माधवराव सिंधिया की आज जयंतीः एक किस्सा दो बार सीएम बनते रह गए सिंधिया, जानिए किसने लगाया था अड़ंगा
केंद्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता स्व. माधवराव सिंधिया की आज जयंती है। उनकी लोकप्रियता कई नेताओं में सबसे अधिक थीं। आज माधव राव सिंधिया इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया में ही वे माधवराव की झलक देख लेते हैं। पूरे प्रदेश में माधवराव को याद किया जा रहा है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई दिग्गज नेताओं ने माधवराव को याद किया है।
दो बार सीएम के लिए चला नाम
ग्वालियर के सिंधिया राजघराने का जिक्र जब-जब आता है, माधवराव सिंधिया की लोकप्रियता और उनके किस्से जरूर लोग याद करते हैं। सिंधिया राजघराने के महाराजा के नाम से चर्चित रहे माधवराव सिंधिया मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। बात उस दौर की है जब 1989 में चुरहट लाटरी कांड हुआ था। उस समय मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे और चुरहट ही अर्जुन सिंह का विधानसभा क्षेत्र होने के कारण उन पर तमाम तरह के आरोप लग रहे थे। अर्जुन सिंह पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया था। इस लाटरी कांड में सीएम के परिवार के लोगों के भी नाम आ गए थे। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा थी कि माधव राव को मुख्यमंत्री बना दिया जाए, लेकिन, अर्जुन सिंह भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी निकल, वे इस्तीफा नहीं देने के अपने रुख पर अड़ गए थे।
तब वोरा को बनाया सीएम
मुख्यमंत्री के नाम के चयन के साथ ही अंतिम दौर में माधवराव भोपाल पहुंच गए थे और मुख्यमंत्री बनने का इंतजार करते रहे, तभी राजनीतिक विवादों के बीच एक ऐसा समझौता हुआ, जिसके बाद मोतीलाल वोरा को मध्यप्रदेश की कमान सौंप दी गई। इस घटना के बाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी अर्जुन सिंह से बेहद नाराज हुए, अर्जुन के धुर विरोधी रहे श्यामाचरण शुक्ल को पार्टी में लाया गया और मोतीलाल वोरा के बाद शुक्ल को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद अर्जुन सिंह ने भी मध्यप्रदेश की राजनीति से अपने आप को दूर कर लिया और केंद्र की राजनीति में चले गए।
दिग्विजय से भी नहीं बैठा तालमेल
सिंधिया और राघोगढ़ राजघराने के दिग्विजय सिंह (राजा साहब) में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता पहले से थी। उनमें भी कभी तालमेल नहीं रहा। 1993 के दौर में जब दिग्विजय मुख्यमंत्री बने उस वक्त भी सिंधिया का नाम शीर्ष पर था, लेकिन रातोंरात पांसे पलटते चले गए और अर्जुन गुट ने दिग्विजय को प्रदेश की कमान सौंप दी। उस वक्त दिग्विजय के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह ही थे। इस घटना के बाद माधव राव दूसरी बार भी एमपी के सीएम बनते-बनते रह गए।
मां-बेटे में आ गई थी कटुता
माधवराव ने अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के खिलाफ जाकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। तब 1979 का दौर था। इसे लेकर मां-बेटे के व्यवहार में इतनी कटुता आ गई कि आपस में बोलचाल ही बंद हो गई और वे अपने ही महल में अलग-अलग रहने लगे। यहां तक कि राजमाता ने अपनी वसीयत में भी लिख दिया था कि मेरे बेटे का जायदाद में कुछ हिस्सा नहीं रहेगा और मेरा अंतिम संस्कार भी नहीं करेगा। हालांकि माधवराव ने ही राजमाता का अंतिम संस्कार किया था।
मां ने ही जिताया था चुनाव
बात1971 की है जब माधवराव 26 साल के थे। उस समय वे जनसंघ के समर्थन से चुनाव मैदान में उतरे थे। इसके बाद 1977 में माधवराव ने ग्वालियर से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन उनका जीतना मुश्किल था, लेकिन राजमाता को जनता से अपील करनी पड़ी, तब माधवराव चुनाव जीत पाए थे। वे ऐसे अकेले प्रत्याशी थे जो 40वीं लोकसभा में निर्दलीय जीत कर गए थे, बाकी सभी जनसंघ की जीत पर गए थे।
तो संजय गांधी के साथ ही हो जाती मौत
माधवराव और संजय गांधी को एयरोप्लेन उड़ाने का बेहद शौक था। दोनों सफदरजंग हवाई पट्टी पर जहाज उड़ाने जाते थे। संजय के पास लाल रंग का नया जहाज पिट्सएस-2ए वापस मिल गया था। जनता पार्टी की सरकार ने इस विमान को जब्त कर लिया था। यह कम ही लोग जानते हैं कि माधवराव और संजय दोनों विमान उड़ाने के लिए दूसरे दिन सुबह जाने वाले थे। लेकिन, माधवराव की नींद नहीं खुली और संजय गांधी अकेले ही उड़ान भरने चले गए। संजय की यह आखिरी उड़ान थी।
माधवराव का भी प्लेन क्रेश हुआ था
माधवराव और संजय गांधी दोनों खास मित्र थे। माधव की भी दुर्घटना संजय की ही तरह 8 सीटर सेसना सी-90 विमान के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से हुई थी। उस समय माधवराव सिंधिया चुनावी सभा को संबोधित करने कानपुर जा रहे थे। इस हादसे में सिंधिया के साथ ही चार पत्रकार भी मारे गए थे।
ज्योतिरादित्य को भी कर दिया था किनारे
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बहुमत तक का सफर तय कर लिया था, लेकिन माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य को लोग मुख्यमंत्री बनता देखना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक के फेर में वे अपनी ही सरकार में किनारे कर दिए गए। इस दौर में भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की ही राजनीति हावी रही। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए और आज मध्यप्रदेश की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के ही समर्थन में बनी है।