योगी सरकार की रोजगार लिस्ट में पूर्वांचल को क्यों मिली तवज्जो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को 'आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान' की शुरुआत की. पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के कुल 31 जिलों को इस अभियान के तहत शामिल किया गया है. इसमें श्रमिकों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए और स्थानीय उद्यम को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक संगठनों के साथ साझेदारी की जाएगी. ऐसे में सवाल उठता है कि गरीब कल्याण रोजगार के तहत पश्चिम यूपी के जिलों को क्यों जगह नहीं दी गई है?
आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान के तहत यूपी के 31 जिलों की 32,300 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया है. इनमें उत्तर प्रदेश के उन्हीं जिलों को शामिल किया गया है, जहां कोरोना संकट काल में प्रवासी मजदूर 25 हजार से ज्यादा लौटे हैं. इस मानक के आधार भी जिलों का चयन किया है और पूर्वांचल और अवध क्षेत्र के तहत आने वाले जिले ही इस सूची में आ पाएं हैं.
गरीब कल्याण रोजगार के तहत आने वाले जिले
रोजगार अभियान के तहत यूपी के सिद्धार्थनगर, प्रयागराज, गोंडा, महराजगंज, बहराइच, बलरामपुर, जौनपुर, हरदोई, आजमगढ़, बस्ती, गोरखपुर, सुलतानपुर, कुशीनगर, संत कबीर नगर, बांदा, अंबेडकर नगर, सीतापुर, वाराणसी, गाजीपुर, प्रतापगढ़, रायबरेली, अयोध्या, देवरिया, अमेठी, लखीमपुर खीरी, उन्नाव, श्रावस्ती, फतेहपुर, मीरजापुर, जालौन और कौशाम्बी शामिल हैं.
इन क्षेत्रों में श्रमिकों को मिलेगा रोजगार
इस अभियान के तहत 25 तरह के कार्यों को चिह्नित किया गया है, जिनमें प्रवासियों को समायोजित किया जाएगा. इसके लिए 1 दर्जन विभागों को जिम्मेदारी दी गई है. इनमें ग्राम्य विकास, पंचायती राज, सकड़ परिवहन, खनन, रेलवे, पेयजल व स्वच्छता, पर्यावरण व वन, पेट्रोलियम व नेचुरल गैस, वैकल्पिक ऊर्जा, रक्षा, टेली कम्युनिकेशन और कृषि विभाग शामिल हैं. केंद्र व प्रदेश दोनों ही आपस में समन्वय कर 31 जिलों में रोजगार अभियानों को गति देंगे.
कोरोना के चलते कहां कितने लौटे श्रमिक
दरअसल कोरोना संकट और लॉकडाउन के चलते देश के दूसरे राज्यों से लौटे प्रवासियों का सबसे अधिक दबाव पूर्वांचल और अवध के जिलों में पड़ा है. पहले से ही पिछड़ेपन और तंगहाली के शिकार पूर्वांचल के जिलों में इस अतिरिक्त वर्क फोर्स ने सरकार के लिए चुनौती बढ़ा दी थी. इसी के चलते योगी सरकार ने प्रवासी श्रमिकों की जिला स्तर पर स्किल मैपिंग कराई है. मसलन, श्रमिक कहां से आया है? वहां उसका काम क्या था? वह स्किल्ड लेबर है या अनस्किल्ड? किस काम में दक्षता है? रोजगार का इच्छुक है या नहीं? इस तरह से योगी सरकार ने सूबे में करीब 35 लाख से ज्यादा श्रमिक की मैपिंग की है.
गोंडा, बहराइच सहित 10 जिले ऐसे हैं जहां एक लाख से भी अधिक लोग आए हैं जबकि जौनपुर, सिद्धार्थनगर व आजमगढ़ में तो यह आंकड़ा दो लाख पार कर गया है. वहीं, 15 जिले ऐसे हैं जहां 1 लाख से कम लेकिन 50 हजार से अधिक प्रवासी हैं. इसके अलावा 6 जिले ऐसे हैं, जहां 25 हजार से अधिक श्रमिक वापस लोटे हैं. इस तरह से 31 जिलों को आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान के तहत शामिल किया गया.
पूर्वांचल में बड़े उद्योग-धंधों की कमी
पश्चिम यूपी में गाजियाबाद, नोएडा व ग्रेटर नोएडा रोजगार का बड़ा केंद्र हैं, लेकिन अवध व पूर्वांचल में ऐसे उद्योग-धंधे न के बराबर हैं. यहां कुछ जिलों में उद्योग के रूप में चीनी मिले हैं और कृषि उद्योग से जुड़े रोजगार हैं. हालांकि, ज्यादातर चीनी मिलें बंद हैं, जिसके चलते योगी और मोदी सरकार ने श्रमिकों को गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत उन्हें जोड़कर स्थानीय स्तर पर काम मुहैया कराने का बीढ़ा उठाया है. लघु उद्योग और हस्तशिल्प स्थानीय रोजगार के अहम माध्यम बन सकते हैं. इसके अलावा मनरेगा एक बड़ा माध्यम रोजगार का बनेगा.
पश्चिम में रोजगार के साधन ज्यादा
वहीं, पश्चिम में रोजगार के अधिक अवसर हैं तो वहां बाहर से लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों की संख्या पूर्व की अपेक्षा बहुत कम है. गाजियाबाद, बागपत, हापुड़, शामली, मथुरा, मेरठ, गौतमबुद्धनगर, ललितपुर, मुरादाबाद, और हाथरस ऐसे यूपी के जिले हैं, जहां 5000 से कम श्रमिक वापस लौटे हैं. कारोबार के लिहाज से भी पश्चिम यूपी काफी संपन्न हैं.
गाजियाबाद व गौतमबुद्धनगर इंजीनियरिंग व मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों का बड़ा सेंटर है तो मेरठ में स्पोर्ट्स, एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के साथ एमएसएमई की तमाम इकाइयां हैं. मथुरा में पर्यटन के अलावा स्वच्छता संबंधी सैनिटरी-फिटिंग्स के टैक्स एंड कॉक्स का उत्पादन होता है.