रेल किराए पर विवाद, लालू की मुफ्त ट्रेन, और प्रभु की ‘जलदूत’
मजदूरों को घर छोड़ने के एवज में उनसे पैसे वसूलने के चलते मोदी सरकार निशाने पर है. वहीं सरकार का कहना है कि वो किराए का 85 फीसदी पैसा दे रही है, बाकी 15 फीसदी राज्य वहन करें. वैसे ये पहला मौका नहीं है जब रेलवे इस तरह श्रमिकों को निकालने के लिए विशेष ट्रेनें चला रहा हो.
12 साल पहले 2008 में जब लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री थे तो उन्होंने बाढ़ पीड़ितों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई थी. खास बात ये है कि उस समय पीड़ितों से कोई पैसा नहीं लिया गया था. अगर मई के महीने की ही बात करें तो चार साल पहले यानी 2016 में महाराष्ट्र के लातूर में जल संकट से निपटने के लिए रेलवे ने पानी की ट्रेनें भेजी थीं. उसके किराए पर भी उस समय भारी विवाद हुआ था.
2008 में बिहार की कोसी नदी में बाढ़ आई थी. इसने बिहार के बड़े हिस्से में भारी तबाही मचाई थी. लाखों लोग कोसी क्षेत्र से पलायन कर बिहार के दूसरे हिस्सों में गए थे. उस समय रेल मंत्री आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव थे. उन्होंने कोसी के बाढ़ पीड़ितों के लिए छह ट्रेनें चलवाई थीं. सहरसा-मधेपुरा, पूर्णिया-बमनखी, सहरसा-पटना और समस्तीपुर से सहरसा के बीच ये ट्रेनें चली थीं. इन ट्रेनों के लिए बाढ़ पीड़ितों से कोई पैसा नहीं लिया गया था.
मोदी सरकार की ही बात करें तो 2016 में सूखे की मार झेल रहे महाराष्ट्र के लातूर में अप्रैल से अगस्त तक रेलवे ने 'जलदूत' ट्रेन से पीने का पानी मुहैया कराया था. उस समय रेल मंत्री सुरेश प्रभु थे. इसके लिए रेलवे ने लातूर नगर निगम को करीब 12 करोड़ रुपये का बिल भी भेज दिया था. संसद में इसे लेकर काफी हंगामा हुआ. इसके बाद सरकार ने ये किराया माफ कर दिया.
रेल पत्रिका के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि कोरोना के संकट में जिस तरह से ट्रेन के डिब्बों को आइसोलेशन वार्ड के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे ही बिहार में बाढ़ के दौरान पीड़ितों के लिए ट्रेन सहारा बन गई थी. रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म को बाढ़ पीड़ितों के लिए शिविर बना दिया गया था. बाढ़ के दौरान जो ट्रेन चलाई गई थीं वो कम दूरी की थीं, लेकिन मालगाड़ियां जो कभी मुफ्त का काम नहीं करती हैं, उनको भी लोगों के कल्याण के लिए 2016 में इस्तेमाल किया गया. देश में अगर रेलवे चाह ले तो कुछ दिनों में ही सभी प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचा सकती है.
वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा कहते हैं कि कोसी की बाढ़ ने सबको आर्थिक रूप से उजाड़ दिया था. लोगों के पास पलायन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था, इसीलिए लालू यादव ने बाढ़ पीड़ितों को लिए मुफ्त में ट्रेनें चलवाईं. हिमांशु मिश्रा कहते हैं कि मजदूरों से घर वापसी के लिए मोबाइल पर अंग्रेजी के फॉर्म भराए जा रहे हैं और उनसे कोरोना टेस्ट के लिए कहा जा रहा है. विदेश से लाए गए लोगों और कोटा से लाए गए बच्चों का ना टेस्ट हुआ, ना ही उनसे किराया लिया गया.
दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज स्टेशन के संपादक सिद्धार्थ तिवारी कहते हैं कि बिहार के बाढ़ पीड़ितों और लातूर पानी ले जाने वाली ट्रेन की तुलना मौजूदा समय चल रही श्रमिक ट्रेन से नहीं की जा सकती. उन्होंने कहा कि भारतीय रेलवे ने राज्य के कहने पर ट्रेन चलाई है और शुरुआत में ही साफ कह दिया था कि यात्रा का जो खर्च होगा उसे राज्य सरकार खुद दे या फिर यात्रियों से वसूल कर दे. रेलवे अगर कोई ट्रेन चला रहा है तो उसका खर्च भी आएगा और इस बात को राज्य सरकारों को देखना चाहिए. जनकल्याण का काम केवल केंद्र का ही नहीं बल्कि राज्य का भी है.
भारतीय रेलवे की तरफ से रोजाना नौ हजार मालगाड़ी, 9 हजार पैसेंजर ट्रेन और 3500 मेल एक्सप्रेस चलाई जाती हैं. लॉकडाउन के चलते रेलवे की यात्री सेवा पूरी तरह से ठप है. रेलवे की कुल कमाई का यात्री और माल किराये से 90 फीसदी आता है.
2019-20 की अप्रैल-जून तिमाही में रेलवे को यात्री किराये से 13 हजार 398 करोड़ 92 लाख रुपये की कमाई हुई थी, जुलाई-सितंबर तिमाही में यह घटकर 13 हजार 243 करोड़ 81 लाख रुपये रह गई. अक्टूबर-दिसंबर में ये और गिरकर 12 हजार 844 करोड़ 37 लाख रुपये पर पहुंच गई. इन आंकड़ों के आधार पर रेलवे ने मार्च से दिसंबर तक 9 महीने में कुल 39 हजार 485 करोड़ की कमाई की.
इस दौरान माल भाड़ा 1 लाख 8 हजार करोड़ से बढ़कर 1 लाख 27 हजार करोड़ हो गया है. रेलवे 2020-21 में 1 लाख 47 हजार करोड़ माल भाड़े और 61 हजार करोड़ के यात्री किराये की उम्मीद लगाए हुए है. लेकिन दो महीने से यात्री सेवा ठप है. ऐसे में उसकी माली हालत भी अच्छी नहीं है.