देश की 6 राज्य सरकारों ने श्रम कानून बदले, जानें क्यों हो रहा इसका विरोध
कोरोना संकट से निपटने के लिए देश भर में लगाए लॉकडाउन को करीब 50 दिन होने जा रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से उद्योग-धंधे ठप हो चुके हैं, जिससे देश और राज्य अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. इससे उबरने और दोबारा से उद्योगों को पटरी पर लाने के लिए राज्य सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव करने भी शुरू कर दिए हैं, जिसके विरोध में सुर भी उठने लगे हैं. इसके बावजूद देश के छह राज्य अपने श्रम कानूनों में कई बड़े बदलाव कर चुके हैं.
श्रम कानूनों में बदलाव की पहले शुरूआत राजस्थान की. गहलोत सरकार ने बदलाव काम के घंटों को लेकर किया. इसके बाद फिर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने बदलाव किया तो 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों की घोषणा कर दी. अब महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा सरकार ने भी अपने यहां नए उद्योगों को आकर्षित करने और ठप पड़ चुके उद्योगों को गति देने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार तीन साल तक देगी छूट
उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन साल के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट देने का फैसला किया है. राज्य सरकार ने अर्थव्यवस्था और निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से छूट का प्रावधान किया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्री परिषद की बैठक में 'उत्तर प्रदेश चुनिंदा श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020' को मंजूरी दी गई, ताकि फैक्ट्रियों और उद्योगों को तीन श्रम कानूनों तथा एक अन्य कानून के प्रावधान को छोड़कर बाकी सभी श्रम कानूनों से छूट दी जा सके.
कानून में संसोधन के बाद यूपी में अब केवल बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा. उद्योगों को वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट 1923 और बंधुवा मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा. उद्योगों पर अब 'पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936' की धारा 5 ही लागू होगी. श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखा गया है. उपर्युक्त श्रम कानूनों के अलावा शेष सभी कानून अगले 1000 दिन के लिए निष्प्रभावी रहेंगे. औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून समाप्त हो गए. ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी खत्म कर दिया गया है. अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून भी समाप्त कर दिए गए हैं. लेबर कानून में किए गए बदलाव नए और मौजूदा, दोनों तरह के कारोबार व उद्योगों पर लागू होगा. उद्योगों को अगले तीन माह तक अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है.
शिवराज सरकार ने कागजी कार्रवाई कम की
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम और कारखाना अधिनियम सहित प्रमुख अधिनियमों में संशोधन किए हैं. प्रदेश में सभी कारखानों में कार्य करने की अवधि को 8 घंटे से बढ़कर 12 घंटे कर दिया है. सप्ताह में 72 घंटे के ओवरटाइम को मंजूरी दी गई है और कारखाना नियोजक उत्पादकता बढ़ाने के लिए सुविधानुसार शिफ्टों में परिवर्तन कर सकेंगे. सरकार ने राज्य में अगले 1000 दिनों (लगभग ढाई वर्ष) के लिए श्रम कानूनों से उद्योगों को छूट दे दी है.
श्रम कानून में संसोधन के बाद छूट की इस अवधि में केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 लागू रहेगी. 1000 दिनों की इस अवधि में लेबर इंस्पेक्टर उद्योगों की जांच नहीं कर सकेंगे. उद्योगों का पंजीकरण/लाइसेंस प्रक्रिया 30 दिन की जगह 1 दिन में ऑनलाइन पूरी होगी. प्रदेश में अब दुकानें सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुल सकेंगी जबकि पहले ये समय सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक था.
कंपनियां अतिरिक्त भुगतान कर सप्ताह में 72 घंटे ओवर टाइम करा सकती हैं और शिफ्ट भी बदल सकती हैं. कामकाज का हिसाब रखने के लिए पहले 61 रजिस्टर बनाने होते थे और 13 रिटर्न दाखिल करने होते थे. संशोधित लेबर कानून में उद्योगों को एक रजिस्टर रखने और एक ही रिटर्न दाखिल करने की छूट दी गई है. प्रदेश में 20 से ज्यादा श्रमिक वाले ठेकेदारों को पंजीकरण कराना होता था, इस संख्या को बढ़ाकर अब 50 कर दिया गया है. शिवराज सरकार ने 50 से कम श्रमिक रखने वाले उद्योगों और फैक्ट्रियों को लेबर कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है. संस्थान सुविधानुसार श्रमिकों को रख सकेंगे. श्रमिकों पर की गई कार्रवाई में श्रम विभाग व श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होगा.