चंबल, कब तक मारामारी
अकेली चंबल नदी कई जिलों की जीवनदायिनी है। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश तक फैली इस नदी के पानी की काफी डिमांड है। ग्वालियर तक इससे अपनी प्यास बुझाने के लिए जोर लगा रहा है।
वैसे ग्वालियर के पेयजल का स्त्रोत सिर्फ तिघरा बांध है। परंतु अवर्षा के कारण यह अधिकतर खाली रह जाता है और बांध के न भरने से यहां पानी की किल्लत भयावह है। लंबे समय से ग्वालियर चंबल का पानी लाने के लिए राजनीति हो रही है। परंतु अभी तक कोई सुखल पहल नहीं होने से यह एक सपना ही है। हालांकि अभी एनसीआर में ग्वालियर के आने से अब उम्मीदें बढ़ी है। निगमायुक्त साहब और केन्द्रीय मंत्री की संयुक्त जोड़ी ने इस दिशा में सराहनीय कदम आगे बढ़ाया है। लेकिन फिर भी यह विचारणीय है कि क्या चंबल अकेला कितनों की प्यास बुझायेगी। जल्द ही इसके विकल्प को नहीं खोजना होगा, क्योंकि पानी न बरसने की स्थिति में इस पर बोझ बढ़ेगा और यह सुकड़ जायेगी।
चंबल पर गौर किया जाये तो इस पर कहीं भी स्आॅपडेम नहीं बना है। स्टाॅपडेम भी ग्वालियर और मुरैना के आसपास कहीं बनाना होगा, जिससे पानी को रोका जाये। स्टाॅपडेम बनने से चंबल पर भी ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा। इधर ग्वालियर में भी एक वैकल्पिक बांध को बनाना चाहिये, जिससे बुढ़े और जर्जर हो रहे तिघरा पर बोझ ना बढ़े। परंतु यह सब राजनीति के मुददे बनकर सिर्फ बातों में उलझते रहते है। धरातल पर इस पर काम करने वाला कोई नहीं।