महाभियोग-न्याय पर प्रहार : कैलाश विजयवर्गीय
कांग्रेस का लोकतंत्र में विश्वास नहीं है, ऐसा देश की जनता ने कई बार अनुभव किया है। कांग्रेस ने अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए आपातकाल लगाकर लोकतंत्र का गला घोंट दिया था। लाखों लोगों पर जुल्म ढहाये। प्रेस की आजादी छीन ली। आम नागरिकों के अधिकार समाप्त कर दिए गए। एक परिवार को सत्ता कायम करने के लिए कांग्रेस के नेताओं ने अब न्याय पालिका को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।
कांग्रेस के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और मुस्लिम लीग भी सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोया मामने में जनहित याचिका खारिज होने और अदालत की तीखी टिप्पणी के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौंपा है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ संसद में महाभियोग लाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया है। इसी दौरान यह बात यह भी सामने आई है कि कांग्रेस के नेताओं में ही मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के मसले
पर फूट पड़ गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने पार्टी के फैसले का विरोध किया है। माकपा नेता प्रकाश करात ने पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी के महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन करने पर कहा है कि उन्हें कोई ऐसी जानकारी नहीं है। बाकी विपक्षी दल भी महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न मामलों में फंसाने की साजिश का लगातार पर्दाफाश हो रहा है। हैदराबाद की मक्का मस्जिद बम धमाके में स्वामी असीमानंद और अन्य हिन्दू नेताओं की फंसाने की साजिश भी सामने आ गई है। एनआईए अदालत ने स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों को बरी किया तो कांग्रेस के हिन्दू आतंकवाद और भगवा आतंकवाद के आरोप झूठे साबित हो गए। देश में बदलती हुई परिस्थितियों में अब कांग्रेस को लग रहा है कि मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए हम देश पर राज नहीं कर सकते तो गुजरात में सोफ्ट हिन्दुत्व का ढोंग रचते हुए राहुल गांधी ने मंदिर-मंदिर का खेल खेला। इसी तरह का खेल कर्नाटक में खेला जा रहा है। अब राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिन्दे, पी चिदम्बरम सफाई देते घूम रहे हैं कि उन्होंने कभी भगवा या हिन्दू आतंकवाद नहीं कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे मुंबई के विशेष सीबीआई जज बीएच लोया की मौत को लेकर चल रहे विवाद पर विराम क्या लगाया कि कांग्रेस ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की राजनीति शुरु कर दी है। कांग्रेस के पिछलग्गू रहे वामदल और मुस्लिम लीग को भी न्याय पर प्रहार करने की मुहिम का हिस्सा बनना ही था। माकपा नेताओं के बीच कांग्रेस का साथ लेने या न लेने के सवाल पर पहले से ही टकराव चल रहा है, लेकिन इस मुद्दे पर तुरंत एकजुट हो गए। सीबीआई की विशेष अदालत के जज बीएच लोया की मौत दिसंबर 2014 में हुई थी। अचानक तीन साल बाद कुछ लोगों ने उनकी मौत को लेकर अभियान शुरु किया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को फंसाने के लिए जज लोया का मौत को लेकर कई सवाल खड़े किए गए। पहले उनके बेटे ने भी कहा कि मौत संदिग्ध पर सच सामने आने पर उन्होंने भी मान लिया कि मौत स्वाभाविक थी। अमित शाह को फंसाने के लिए कांग्रेस और दूसरे लोगों ने जज लोया के परिवार की भावनाओं को आहत करते हुए बार-बार सवाल उठाये।
सुप्रीम कोर्ट ने न केवल जज लोया की मौत को स्वाभाविक बताते हुए स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग खारिज
कर दी बल्कि व्यक्तिगत दुश्मनी निपटाने के लिए कोर्ट को मंच न बनाने की सलाह भी सख्त शब्दों में दी। न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवमानना माना था। अदालत का साफ-साफ कहना था कि सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक लड़ाई का मैदान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को फंसाने की साजिश नाकाम हुई तो कांग्रेस अब मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ ही खड़ी हो गई। यानी मनपंसद न्याय नहीं मिला तो न्यायालय पर ही सवाल उठा दिए। इससे पहले टूजी मामले में अदालत के फैसले पर कांग्रेस ने खुशी जताई थी। कांग्रेस के नेताओं की खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचने जैसी हालत हो गई है। जनता की अदालत से बार-बार खारिज हो रही कांग्रेस और अन्य दल अब अदालतों पर भी टिप्पणी करने लगे हैं। न इनका लोकतंत्र में विश्वास है और न हीं न्याय पालिका में। लगता तो यही है कि कांग्रेस महाभियोग प्रस्ताव के जरिये न्यायपालिका पर दवाब बनाना चाहती है। कांग्रेस, माकपा, भाकपा,राकांपा, बसपा और मुस्लिम लीग ने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए तर्क दिए हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को मीडिया में आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी। मुख्य न्यायाधीश के प्रशासनिक फैसलों को लेकर नाराजगी जताई गई। मीडिया में आने वाले चार जज बताना चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। जमीन का अधिग्रहण करना, फर्जी एफिडेविट लगाना और सुप्रीम कोर्ट के जज बनने के बाद 2013 में जमीन को सरेंडर करना और जज लोया का मामला। अब इन आरोपों को लेकर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ संसद में प्रस्ताव लाने के लिए उपराष्ट्रपति को नोटिस सौंपा गया।
प्रस्ताव पर चर्चा कराने के लिए समिति विचार करेगी। इस दौरान इतना तो साफ हो गया है कि कांग्रेस के नेता भगवा और हिन्दू आतंकवाद के आरोप पर लगातार घिरते जा रहे थे। जज लोया मामले में तो अमित शाह को फंसाने की साजिश पर उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जोर का झटका लगा है। कांग्रेस के पुराने पाप एक-एक करके सामने आते जा रहे हैं। गुजरात उच्च न्यायालय ने पूर्व मंत्री माया कोडनानी को नरोदा पटिया दंगा मामले में बरी कर दिया है। माया कोडनानी को दंगा मामले में फंसाने की साजिश का भी खुलासा हो गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को भी कई बार फंसाने की साजिश की गई थी। अमित भाई शाह को भी जेल काटनी पड़ी पर बाद में सत्य की विजय हुई। झूठ के बल पर बार-बार खड़ी होने की कोशिश करने वाली कांग्रेस के नेताओं को अब जनता से माफी मांगनी चाहिए।