MP के अफसर और नेता हर साल बढ़ा रहे दाम, क्यों महंगी बिजली

भोपाल. मध्य प्रदेश ने 24 साल में ऊर्जा सेक्टर में कई कीर्तिमान गढे लेकिन बिजली वितरण कंपनियां घाटे में गिना शुरू हुई तो बाहर नहीं आ सकी। अभी 3 बिजली वितरण कंपनी मध्य, पूर्व व पश्चिम क्षेत्र का घाटा 64843 करोड से अधिक है। अफसर और नेता घाटे का हवाला देकर हर साल बिजली महंगी करा रहे है। जनता पर बोझ पड रहा है। मध्य प्रदेश में 24 साल पहले तक बिजली बोर्ड था। इसका प्रबंधन कई राज्यों के लिए नजीर था। 1985 में तो कांग्रेस की तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार ने इस बोर्ड से तेंदूपत्ता संग्राहकों को भुगतान और राज्य के कुछ कर्मियों को वेतन के लिए रुपए लिए थे लेकिन बिजली के जरिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का चस्का ऐसा चढा कि अच्छे खासे बोर्ड की वित्तीय स्थिति गडबडा गई। इसके बाद ऊर्जा सेक्टर में सुधारों के नाम पर कंपनियां बना दीं।
बिजली कंपनियों के घाटे में जाने के ये 3 बडे कारण
प्रति 100 यूनिट में से कुछ कंपनियों में 18 और कुछ में 27 यूनिट बिजली चोरी हो जाना।
उपभोक्ताओं पर वर्षों से बकाया राशि का वसूल नहीं हो पाना।
कुछ सरकारों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए बिजली में विभिन्न वर्गों को दी जाने वाली छूट की राशि कंपनियों को समय पर भुगतान नहीं करना।
IAS नहीं होते थे मुखिया तब भी फायदे में था बोर्ड
मध्य प्रदेश बिजली बोर्ड से 1999 में एडिशनल चीफ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त चीफ इंजीनियर केके ससेना बताते हैं कि तब बोर्ड में सभी प्रमुख पदों पर विभागीय अफसर थे। उन्हें जमीनी जानकारी थी। ज्यादातर समय चेयरमैन भी विभाग से ही होते थे। तब के विभागीय अफसर निर्णय लेने, जमीनी स्तर पर पालन कराने, सरकार के सामने मजबूती से बोर्ड के हित रखने में हिचकते नहीं थे। राजनीतिक दबाव बर्दाश्त नहीं करते थे, इसलिए बोर्ड अच्छा चला। तब बोर्ड के मुखिया आइएएस नहीं होते थे, तब भी ये स्थिति थी। अब तो कंपनियों में सभी प्रमुख पदों पर दक्ष आइएएस हैं। तब भी कंपनियां घाटे में हैं और जनता नुकसान भुगत रही है, सरकार को इस स्थिति की पड़ताल करनी चाहिए।