एमपी ट्रांस्को के स्टेट लोड डिस्पेच सेंटर के डाटा से बनेगा पावर सेक्टर के लिए उपयोगी साफ्टवेयर
मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी के स्टेट लोड डिस्पेच सेंटर जबलपुर के डाटा से पावर सेक्टर के लिए एक बेहद उपयोगी साफ्टवेयर तैयार किया जा रहा है। यह साफ्टवेयर आईआईटी इंदौर की इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर डा. तृप्ति जैन तैयार कर रही हैं। इसमें मध्यप्रदेश पावर ट्रांसमिशन कंपनी सहयोग करेगी। इस सिलसिले में उन्होंने गत दिवस स्टेट लोड डिस्पेंच सेंटर जबलपुर का दौरा कर इस सेंटर में संधारित किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के डाटा एवं कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी प्राप्त की।
इस साफ्टवेयर के लिए ट्रांसको अपने लोड डिस्पेच सेंटर जबलपुर में संधारित हो रहे पीएमयू (फेसर मेजरमेंट यूनिट) का डाटा आईआईटी इंदौर के विशेषज्ञ को अध्ययन के लिए उपलब्ध कराएगा। इस दौरे के समय पावर ट्रांसमिशन कंपनी के मुख्य अभियंता मानव संसाधन व प्रशासन संदीप गायकवाड़ व लोड डिस्पेच सेंटर के अतिरिक्त मुख्य अभियंता आर. ए. शर्मा उपस्थित थे। आर. ए. शर्मा ने बताया कि पीएमयू (फेसर मेजरमेंट यूनिट) से ट्रांसमिशन सिस्टम की मॉनिटरिंग और उसका विश्लेषण किया जाता है। ये सिस्टम वर्तमान में क्रियाशील स्काडा सिस्टम से भी 200 गुना ज्यादा तेज है। यह सिस्टम पूरे प्रदेश के पावर सिस्टम का रियल टाइम डाटा एक सेंटर में उपलब्ध करवाता है। यहां इलेक्ट्रिकल सिस्टम के सभी पैरामीटर समाहित रहते हैं, जिससे रियल टाइम में सब स्टेशनों के उपकरणों और अति उच्चदाब लाइनों के पैरामीटर आप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से हाई स्पीड में उपलब्ध होते हैं। यह प्रक्रिया सिस्टम की मानिटरिंग और बचाव में बेहद उपयोगी है। इन सभी विभिन्न प्रकार के डाटा का अध्ययन कर डा. तृप्ति जैन पावर सेक्टर के आपरेशन के लिए साफ्टवेयर तैयार करेंगी। उनका यह प्रयास सफल होने पर पूरे भारत वर्ष के पावर सेक्टर को मदद मिलेगी। एनआईटी अगरतला के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसियेट प्रोफेसर डा. अरविंद कुमार जैन भी इस प्रोजेक्ट में उनके साथ संबद्ध हैं।
2.62 प्रतिशत पारेषण हानि सुन अचंभित रह गये विशेषज्ञ
आईआईटी इंदौर व एनआईटी अगरतला के विशेषज्ञों को जब इस बात की जानकारी मिली कि एमपी ट्रांस्को की पारेषण हानि 2.62 प्रतिशत है, तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उल्लेखनीय है कि एमपी ट्रांस्को की पारेषण हानि मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग की गाइडलाइन की अधिकतम पारेषण हानि सीमा से भी बहुत कम है। दोनों विशेषज्ञों ने कहा कि वे अभी भी विद्यार्थियों को 10 प्रतिशत पारेषण हानि ही पढ़ाते हैं, लेकिन अब वे इसे एमपी ट्रांस्को का उदाहरण देकर पढ़ाएंगे कि सही दिशा में किए प्रयासों से पारेषण हानि को इतना कम भी किया जा सकता है।