Diwali Festival: प्रयागराज में कुम्हारों के लिए 'इलेक्ट्रिक चाक' बनी बड़ी मुसीबत, ये रही वजह

प्रयागराज. दीपावली (Diwali Festival) का त्यौहार नजदीक आते ही कुम्हार मिट्टी के दिये और दूसरे मिट्टी के बर्तनों को तैयार करने में जुट गए हैं. लेकिन कुम्हारों के सशक्तिकरण के लिए शुरू की योजना ही अब उनके मुंह से निवाला छीनने को तैयार है. दरअसल जहां पहले ही दीपावली के त्यौहार पर मिट्टी के दियों की बिक्री पर बिजली की झालरों और मोमबत्ती ने खासा असर डाल रखा है. वहीं अब सरकार की ओर से कुम्हारों को मुहैया कराये गए इलेक्ट्रिक चाक भी उनके लिए किसी मुसीबत से कम नजर नहीं आ रहे हैं. कुम्हारों का कहना है कि इलेक्ट्रिक चाक से मिट्टी के बर्तन और दिये तैयार करने पर बिजली का बिल बहुत ज्यादा आ रहा है. जिससे मिट्टी के दिए और बर्तनों को तैयार कर बेचने पर उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है. वहीं मिट्टी के बर्तन और खिलौने तैयार करने के लिए उन्हें तालाब से अच्छी मिट्टी भी नहीं मिल पा रही है. जिससे उनकी मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं.

राम बाबू प्रजापति ने बताया कि सरकार की ओर से मिली बिजली की इलेक्ट्रिक चाक से तैयार मिट्टी के बर्तनों और दियों की लागत ज्यादा आती है. जिससे सही कीमत नहीं मिलेगी तो उनके परिवार का भरण पोषण तो दूर लागत निकालना भी मुश्किल हो जायेगा. योगी सरकार ने माटी कला को बढ़ावा देने के लिए ही माटी कला बोर्ड का गठन किया है और इसके तहत चयनित कुम्हारों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें इलेक्ट्रिक चाक भी दिए गए हैं. लेकिन बिजली की ज्यादा खपत से बिल ज्यादा आने से अब कुम्हार परेशान हो उठे है. कई कुम्हारों ने इलेक्ट्रिक चाकों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया है और पुराने पारम्परिक पत्थर के चाक पर ही वापस काम कर रहे है.

मिट्टी की किल्लत?

कुम्हार राम बाबू के मुताबिक सरकार ने उनकी ओर कुछ ध्यान जरुर दिया है. लेकिन अभी पूरी तरह से समस्याएं हल नहीं हो पायी हैं. रामबाबू के मुताबिक तालाबों को पाटकर गगनचुंबी इमारतें बन गई हैं. जिससे दिए और मिट्टी के खिलौने तैयार करने के लिए उन्हें मिट्टी नहीं मिल पाती है. बड़ी मुश्किल से 3500 रुपये प्रति ट्राली मिट्टी मिलती है. जो साफ नहीं होने से उसे छानना पड़ता है जिसे तैयार करने में काफी परिश्रम करना पड़ता है.

एक माह में 20 हजार का बिजली बिल

प्रयागराज शहर के अलोपीबाग की कुम्हार बस्ती में रहने वाले श्याम बाबू समेत कई कुम्हारों को कुम्हारी कला योजना के तहत बिजली से चलने वाले चाक दिए गए थे. इन इलेक्ट्रिक चाकों को मिलने के बाद इनकी खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन बिजली का बिल देखकर अब ये कुम्हार भी परेशान हो उठे हैं. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले श्याम बाबू के मुताबिक वे जितना कमाते हैं उतना बिजली का बिल भर देते हैं इससे अच्छा है कि पत्थर वाला चाक ही चलायें. बिजली का चाक चलाने से एक माह में 20 हजार का बिजली का बिल आ गया है. जिससे वो बेहद परेशान हो उठे हैं.