Tripura, Nagaland Election Result 2018: अमित शाह: सियासत के सबसे बड़े खिलाड़ी
इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस ने एक साथ 18 राज्यों में शासन किया था, लेकिन बीजेपी अब 21 राज्यों की सत्ता में सत्ता चलाएगी. इस वक्त देश की कुल आबादी के करीब 70 फीसदी हिस्से पर बीजेपी और उसके सहयोगियों का राज कायम हो गया है. इस ऐतिहासिक कामयाबी का असली सेहरा अमित शाह के सिर बंधता है.
पूरे देश को कांग्रेस और वामपंथ मुक्त करके राज करने के इस अभियान की सफलता के पीछे कई वजहें भी हैं. अमित शाह शतरंज के खिलाड़ी रहे हैं. वो जानते हैं कि कौन मोहरा किस जगह राजा और रानी के लिए खतरा बन सकता है. शतरंज के कोई तयशुदा नियम नहीं हैं, जैसा मौका वैसी चाल. इसलिए नॉर्थ-ईस्ट में कामयाबी के लिए उन्होंने शतरंज की तरह ही गोटियां फिट कीं, जिसका परिणाम सबके सामने हैं.
अध्यक्ष बनने के बाद हिंदी पट्टी में पार्टी के विस्तार के साथ ही उनकी नजर पूर्वोत्तर पर भी लगी हुई थी. जबकि बीजेपी उनसे पहले इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी. इसलिए उन्होंने पूर्वोत्तर में भी अपने प्रवास शुरू किए.अमित शाह अपनी सियासी बाजी शतरंज की तरह चलते हैं
इनमें ज्यादातर दौरे वो थे जिनमें वो पार्टी का जमीनी ढांचा मजबूत कर रहे थे या उसे त्रिपुरा जैसे वामपंथ के गढ़ राज्य में पूरी तरह जमीन से ही खड़ा कर रहे थे. त्रिपुरा की जनता में उन्हें सत्ता के खिलाफ आक्रोश दिखा इसलिए उन्होंने इस छोटे से प्रदेश को दो साल में 18 दिन दिए. इसलिए त्रिपुरा और नगालैंड में बीजेपी की कामयाबी को सिर्फ करिश्मा नहीं माना जा सकता. शून्य से सत्ता तक लाने के पीछे शाह की मेहनत और रणनीति ने बड़ा काम किया.
वह अगस्त 2014 से बीजेपी के अध्यक्ष हैं. देश के 21 राज्यों में बीजेपी और सहयोगियों की सरकार बनवाने के साथ-साथ उन्होंने भाजपा को 10 करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनाने की भी कामयाबी दिलाई है.शाह ने चुनाव के दिनों में एक दिन में औसतन 524 किलोमीटर का सफर किया. उनकी वेबसाइट पर मार्च 2017 तक की यात्राओं का हिसाब मौजूद है. यह उनके राजनीतिक कौशल का ही परिणाम है कि 2016 के विधानसभा चुनावों में असम में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. यही नहीं केरल, पश्चिम बंगाल तथा तमिलनाडु में भी मजबूती से उभरी. इसलिए कोई इससे इनकार नहीं कर रहा है कि बीजेपी के अब तक के शानदार सफर के सबसे बड़े सेनानी अमित शाह हैंअमित शाह ने बीजेपी में एक पोल एजेंट के रूप में काम शुरू किया था
शाह की रुचि नाटकों में भी है. अपने विद्यार्थी जीवन में उन्होंने मंच पर कई बार प्रदर्शन किया है. सियासत भी रंगमंच ही है, इसे उनसे बेहतर कौन समझ सकता है. फिलहाल तो पूर्वोत्तर जैसे गैर हिंदीभाषी क्षेत्र में भी भगवा लहराने के बाद विपक्ष को समझ नहीं आ रहा है कि शाह की सियासी जादूगरी की काट क्या है.