बिहार चुनाव: बेटे को हराने के लिए कभी जगदानंद सिंह ने लगाया था दम, इस बार जिताना चुनौती
देश के ज्यादातर राजनीतिक दल परिवारवाद का नमूना बन गए हैं, यहां सियासत योग्यता से कम पारिवारिक विरासत से ज्यादा तय होती है. कर्मठ कार्यकर्ता किनारे कर दिए जाते हैं और बेटे-बेटियों-पत्नियों को विरासत सौंप दी जाती है. बिहार में आरजेडी यानी राष्ट्रीय जनता दल भी इससे अछूता नहीं है. लेकिन इसी पार्टी में एक ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने 2009-10 में अपने बेटे को विधानसभा का टिकट देने का विरोध कर दिया था.
बगावत पर उतरे बेटे ने बीजेपी का दामन थाम लिया. लेकिन पिता ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार का प्रचार किया. बेटा हार गया. लेकिन हालात बदल गए हैं. बेटा बीजेपी से बाहर है और आरजेडी का उम्मीदवार है. पिता का विरोध गायब है या मौन सहमति है. इस बार उनके सामने बेटे को जिताने की चुनौती है क्योंकि वह प्रदेश अध्यक्ष हैं. यह कहानी है 6 बार विधायक, एक बार सांसद और बिहार में कई बार मंत्री रहे जगदानंद सिंह और उनके बेटे सुधाकर सिंह की.
रामगढ़ सीट से 6 बार विधायक रहे जगदानंद सिंह
2009 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने कैमूर की रामगढ़ सीट से 6 बार विधायक रहे जगदानंद सिंह को बक्सर से उम्मीदवार बना दिया. लालू के खास रहे जगदानंद सिंह चुनाव जीत गए. रामगढ़ की सीट खाली हो गई. 2009 में उपचुनाव घोषित हुआ. पार्टी चाहती थी कि जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह को यहां से टिकट दिया जाए, लेकिन कर्पूरी ठाकुर और जेपी को आदर्श मानने वाले जगदानंद सिंह का कहना था इससे वंशवाद को बढ़ावा मिलेगा, आम कार्यकर्ता निराश होंगे. उधर राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले सुधाकर सिंह भी चाहते थे कि उन्हें टिकट मिल जाए. लेकिन जगदानंद सिंह ने अंबिका यादव को टिकट दिलवाया और ठाकुर बाहुल्य सीट पर उन्हें विजय दिलवा दी. मंत्री रहते हुए इलाके में किए गए काम के लिए जगदानंद को आज भी याद किया जाता है.
पिता-पुत्र में सालों तक बोलचाल बंद रही...
इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई. सुधाकर सिंह चाहते थे कि इस बार उन्हें टिकट मिल जाए, पार्टी को भी कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन जगदानंद की सहमति नहीं मिली. सुधाकर को लगता था कि पिता पिघल जाएंगे, उन्होंने निर्दलीय पर्चा भर दिया. मौके की तलाश में बैठी बीजेपी ने उन्हें टिकट दे दिया. पार्टी लालू के गढ़ को किसी भी तरह ध्वस्त करना चाहती थी. जगदानंद सिंह के लिए विकट स्थिति पैदा हो गई. जानकार बताते हैं कि लालू को जगदानंद पर भरोसा था. वह कहते रहे कि जगदा बाबू जो करेंगे पार्टी के हित में करेंगे. दूसरी ओर लड़ाई कठिन होती जा रही थी. इलाके में लोग यह भी कहने लगे थे कि हो सकता है कि सुधाकर सिंह को जगदानंद सिंह का अंदर से समर्थन हासिल हो. इस मिथक को तोड़ने के लिए जगदानंद सिंह ने रामगढ़ में कैंप कर दिया. उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी का प्रचार और बीजेपी का खुलकर विरोध किया. सुधाकर सिंह चुनाव हार गए. बताया जाता है कि इसके बाद पिता-पुत्र में वर्षों तक बोलचाल बंद रही. बहुत दिनों तक दोनों के रास्ते अलग रहे.
अहसास हुआ, बीजेपी में आकर गलती की...
इसके बाद कहानी ने फिर करवट ली. 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां से अशोक सिंह को मैदान में उतार दिया. उधर, जगदानंद सिंह 2014 का चुनाव बक्सर से हारकर कमजोर पड़ गए थे. बीजेपी यह सीट जीतकर संदेश देना चाहती थी कि लालू का आखिरी किला ध्वस्त हो चुका है. आखिरकार आरजेडी उम्मीदवार अंबिका यादव चुनाव हार गए, बीजेपी के अशोक सिंह ने यहां भगवा फहरा दिया. यहां से सुधाकर सिंह को अहसास होने लगा था कि उन्होंने बीजेपी में आकर गलती की. यह भी कहा जाता है कि जगदानंद को उनके टिकट से ऐतराज नहीं था लेकिन वो चाहते थे कि सुधाकर पहले पार्टी के लिए काम करें फिर टिकट का दावा करें, केवल जगदानंद के बेटे की वजह से उन्हें टिकट नहीं दिया जाए. बताया जाता है कि सुधाकर सिंह को न बीजेपी आत्मसात कर पाई न वह बीजेपी को. 2019 में एमएलसी का चुनाव हुआ जिसमें उनके भाई डॉक्टर पुनीत सिंह को आरजेडी ने उम्मीदवार बनाया. सुधाकर सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार की जगह अपने भाई के लिए प्रचार किया. बीजेपी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.
सुधाकर सिंह को रामगढ़ से उम्मीदवार बनाया है
सुधाकर सिंह की बीजेपी से दूरी और आरजेडी से नजदीकी को पूर्व विधायक अंबिका यादव ने भी ताड़ लिया. उन्होंने आरजेडी छोड़ बीएसपी ज्वाइन कर ली. सुधाकर सिंह ने आरजेडी की सदस्यता ले ली. इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें रामगढ़ से टिकट मिलेगा. कयास सच साबित हुए. आरजेडी ने जो पहली लिस्ट जारी की उसमें सुधाकर सिंह को रामगढ़ से उम्मीदवार बनाया गया है.
इस समय जगदानंद सिंह राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इस बार उन्होंने बेटे को टिकट देने का विरोध क्यों नहीं किया? इस पर पटना के वरिष्ठ पत्रकार राहुल कहते हैं. ‘बाप की सबसे बड़ी चिंता होती है बेटे का करियर और बेटी की शादी. जगदानंद सिंह ने जब विरोध किया था तो वह दो तरह की नजीर पेश करना चाहते थे. वह लालू को भी संदेश दे रहे थे कि वंशवाद ठीक नहीं. दूसरी ओर बेटे को भी समझा रहे थे कि पैराशूट की तरह मैदान में केवल बाप के भरोसे उतरना ठीक नहीं.
सुधाकर सिंह को तब ये बातें भले ही बुरी लगी हों लेकिन अब क्षेत्र में उन्हें उनके नाम से पहचाना जाने लगा है. आरजेडी जवाइन करने के बाद तो उन्होंने इलाके में बहुत समय दिया है. एक कारण और भी है कि पार्टी को भरोसा है कि जगदानंद सिंह के परिवार का ही कोई इस सीट को वापस ला सकता है. लालू जेल में हैं. आरजेडी के लिए एक-एक सीट जीतना मरने-जीने का सवाल बना हुआ है. इसलिए भी सुधाकर सिंह को टिकट दिया गया होगा.
हालांकि, इस सीट को दोबारा हासिल करना आरजेडी और जगदानंद के लिए चुनौती होगी. भले ही सीट ठाकुर बाहुल्य हो लेकिन यहां बीजेपी कहीं से कमजोर नहीं है. जेडीयू उसके साथ है, हम, वीआईपी और एलजेपी का भी उसे समर्थन हासिल है. हां अगर जगदानंद सिंह क्षेत्र में जाकर कोई भावुक अपील कर दें तो कुछ कहा नहीं जा सकता.