कर्नाटक चुनाव: BJP की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं सिद्धारमैया!
कर्नाटक में बीजेपी के सबसे बड़े हिंदू चेहरे बीएस येदियुरप्पा को पार्टी हाईकमान ने अप्रैल 2016 में प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नियुक्त किया था. इसके एक महीने बाद लिंगायत नेता और राज्य के पूर्व सीएम येदियुरप्पा दिल्ली में कुछ 'चुनिंदा' मीडियावालों से रूबरू हुए. तब मीडिया से किसी ने सवाल पूछा था कि क्या राज्य में ऐसा कोई वास्तविक कांग्रेस नेता है, जो सीएम सिद्धारमैया की जगह ले सके? इस सवाल के जवाब में येदियुरप्पा ने कहा था कि बीजेपी के लिए बेहतर होगा कि सिद्धारमैया सीएम पद से न हटाए जाएं.
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए येदियुरप्पा ने कहा था, "मुख्यमंत्री के तौर पर सिद्धारमैया लोकप्रिय नहीं है. खुद उनकी कांग्रेस पार्टी का मानना है कि अगर सिद्धारमैया 2018 के चुनाव तक बने रहते हैं, तो पार्टी के लिए कोई मौका नहीं होगा. वैसे, सिद्धारमैया ने खुद ऐलान किया है कि वो अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. हम चाहते हैं कि वो अपना कार्यकाल पूरा करें. इसलिए चुनाव जीतने के लिए हमें राज्य में ज्यादा प्रचार करने की जरूरत नहीं है."
येदियुरप्पा बेशक कर्नाटक के चुनाव प्रचार में ज्यादा जोर लगाने की जरूरत नहीं महसूस करते हों, लेकिन उनके करीबी सूत्रों के मुताबिक, आने वाले दिनों में येदियुरप्पा पूरी तरह से गलत साबित होंगे और अपने बयान पर उन्हें जरूर पछताना पड़ेगा. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि पिछले दो साल से राज्य में चीजें तेजी से बदली हैं. कर्नाटक की राजनीति में सिद्धारमैया के पक्ष में बहुत कुछ हैं, जबकि कई चीजें येदियुरप्पा के खिलाफ देखी जा रही हैं.
कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि सिद्धारमैया इकलौते ऐसे नेता हैं, जो इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कर्नाटक के बीच खड़े हैं. ये सिद्धारमैया ही हैं, जिसे कांग्रेस का 'रक्षक' माना जा रहा है. कर्नाटक में सिद्धारमैया कांग्रेस के सबसे बड़े रक्षक और बीजेपी के सबसे बड़े विरोधी बन गए हैं.
जब सिद्धारमैया जनता परिवार के नेता थे और एचडी देवेगौड़ा के करीबी हुआ करते थे, तब उन्होंने 2013 में कर्नाटक के तत्कालीन सीएम रहे एम. मल्लिकार्जुन खड़गे को साइड लाइन कर दिया था. जिसके बाद वो कई लोगों को खटकने लगे थे. ऐसे में कांग्रेस में उनका आना वाकई आश्चर्यजनक घटना थी.
जनता परिवार में रहते हुए सिद्धारमैया की देवेगौड़ा और उनके बेटे के साथ वैचारिक मतभेद सामने आने लगे. 2005 में तत्कालीन पीएम देवगौड़ा ने सिद्धारमैया को कर्नाटक के डिप्टी सीएम के पद से हटा दिया.
इसके बाद सिद्धारमैया की अगुवाई में AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित मोबिलाइजेश मूवमेंट) आंदोलन दोनों नेताओं के बीच कड़वाहट का प्रमुख कारण बना. सिद्धारमैया के सत्ता गंवाने के बाद कई राजनीतिक जानकारों ने उनके पॉलिटिकल करियर खत्म होने को लेकर लेख लिखे. लेकिन, सिद्धारमैया का पॉलिटिकल करियर यहीं खत्म नहीं हुआ, बल्कि उसके बाद वो सशक्त राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमताओं के लिए पहचाने जाने लगे.
इस बीच सिद्धारमैया ने कांग्रेस में शामिल होकर एक तरह से अविश्वसनीय घटना को अंजाम दिया. क्योंकि, कांग्रेस जनता दल की धुर विरोधी थी. इसके कुछ महीनों बाद मैसूर के चामुंडेश्वरी सीट पर उपचुनाव हुए. सिद्धारमैया ने यह उपचुनाव जीत लिया. 2009 में वह राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. तीन साल पहले कांग्रेस का 'हाथ' थामने वाले सिद्धारमैया के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी.
सिद्धारमैया के पुराने दोस्त प्रोफेसर बीके रवि इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि सिद्धारमैया अपने राजनीतिक नेतृत्व को लेकर लोकप्रिय नहीं थे. उन्होंने बताया, "वह एक अभूतपूर्व राजनेता थे. सिद्धारमैया एक ऐसे जानकार नेता थे, जो चंद पलों में मामलों को समझ लेते थे. वह पैदाइशी नेता थे. उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस को मजबूत बनाया है. उन्हें किसी ने सत्ता थाली में परोस कर नहीं दी. बल्कि, उन्होंने खुद सत्ता कमाई है."
साल 2010 में येदियुरप्पा सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों पर डिबेट के दौरान सिद्धारमैया ने एक बार विधानसभा में कहा था कि वो एक दिन मुख्यमंत्री बनेंगे और कोई उन्होंने रोक नहीं पाएगा. बाद में ऐसा ही हुआ. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने. अपनी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में सिद्धारमैया ने राज्य को जनहितकारी नीतियों पर फोकस किया. उन्हें 'भाग्य का सीएम' भी कहा जाता है.
हालांकि, अभी तक सिद्धारमैया मीडिया की पहुंच से दूर थे. सोशल मीडिया पर उनका कोई अकाउंट नहीं था. लेकिन, जुलाई 2016 में बेल्जियम में हुए एक हादसे में 38 साल के बेटे राकेश को खोने के बाद सारी चीजें बदल गईं. इस दुखद घटना के कुछ दिनों के बाद सिद्धारमैया ने अपने करीबी दोस्त से कहा था कि वो दूसरी बार सत्ता में आना चाहते हैं. उन्होंने अपने दोस्त से अगले चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व करने की बात भी कही थी.
सिद्धारमैया के निजी सहयोगी के मुताबिक, "इसके बाद एकदम से सब कुछ बदल गया. हम सोच रहे थे कि वो राजनीति से संन्यास ले लेंगे. क्योंकि, जवान बेटे को खोना उनके लिए बहुत बड़ा झटका था. लेकिन, वो अपने ग़म को पीकर रह गए और बीजेपी के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया."
इसके बाद सिद्धारमैया ने धीरे-धीरे मीडिया से बात करनी शुरू की, फेसबुक और ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया. पिछले एक साल में सिद्धारमैया सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहने वाले मुख्यमंत्री हैं.
राज्य कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव ने कहा, "आमतौर पर बीजेपी एजेंडा सेट करती है और बाकी उसपर प्रतिक्रया देते हैं. लेकिन, सिद्धारमैया के मामले में वह एजेंडा सेट कर रहे हैं और बीजेपी प्रतिक्रया दे रही है. सिद्धारमैया बहादुर हैं और साहसपूर्वक बीजेपी का सामना कर रहे हैं. वह अपनी चीजों को लेकर बहुत क्लियर हैं."