बीजेपी के गढ़ में सपा-बसपा की जीत विपक्ष के लिए अच्छी खबर लेकिन कांग्रेस के लिए नहीं

त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में जीत का स्वाद चखने के बाद गोरखपुर व फूलपुर की हार ने भाजपा के लिए काफी शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी है. लेकिन गोरखपुर व फूलपुर में हार के बाद मुद्दा सिर्फ ये नहीं है कि बीजेपी हारी है बल्कि ये भी है कि कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ये सीटें बीजेपी के लिए उसकी प्रतिष्ठा थीं. पर इस सीट की हार ने ये बात साफ कर दी कि बसपा व सपा के गठबंधन का प्रयोग सफल रहा. इससे उत्साहित होकर सपा व बसपा इस प्रयोग को 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दोहरा सकती है. संभावना है कि 2019 के चुनाव में बीजेपी बनाम एंटी बीजेपी फ्रंट रहेगा लेकिन जैसा कि कांग्रेस उम्मीद कर रही है ज़रूरी नहीं है कि कांग्रेस की इसमें महत्तवपूर्ण भूमिका हो.

हर एक घटना के बाद कांग्रेस अपनी विश्वसनीयता को खोती जा रही है. यहां तक कि उपचुनावों के लिए भी सपा ने गठबंधन के लिए अपनी धुर विरोधी पार्टी बसपा को चुना न कि कांग्रेस को. इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि यूपी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा ने गठबंधन किया था, पर उस समय की करारी हार के बाद शायद सपा का कांग्रेस से भरोसा उठ गया.

कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार पार्टी खुद इस बात को लेकर चिंतित है कि इसका क्या भविष्य होगा. हालांकि कांग्रेस की कोशिश है कि विपक्ष कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही घूमता रहे. यूपीए अध्यक्ष द्वारा दी जाने वाली डिनर पार्टी इसी दिशा में की गई एक कोशिश थी. कांग्रेस पार्टी विपक्ष के नेता के रूप में किसी और को मौका नहीं देना चाहती

शरद पवार और ममता बनर्जी ने इस मामले में एक-दूसरे के साथ ज़ोर आज़माइश शुरू कर दी है. दोनों नेताओं ने स्पष्टता के साथ कहा कि वो किस तरह का विपक्ष चाहते हैं. टीएमसी इस मामलें में काफी आक्रामक है और वो कांग्रेस से इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि कांग्रेस ने त्रिपुरा में उसके साथ एलायंस करने से मना कर दिया था. ममता बनर्जी ने टीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव से भी बात करने की कोशिश की जिन्होंने एंटी-बीजेपी, एंटी-कांग्रेस फ्रंट की मांग की थी.

महाराष्ट्र में शरद पवार ने बीजेपी के खिलाफ रैली भी निकाली जिसमें कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियो ने भाग लिया. एनसीपी प्रमुख इस महीने के अंत तक विपक्षी पार्टियों को डिनर पर बुलाने वाले हैं. इसलिए कांग्रेस अगर इन पार्टियों को अगुवाई करना चाहती है तो उसे इन पार्टियों को समझाना होगा व साथ लेकर चलना होगा.