क्या कॉस्मेटिक प्रोडक्ट पर नॉन-वेज और वेज का लेबल लगाना होगा अनिवार्य? HC में पहुंचा मामला
नई दिल्ली. कॉस्मेटिक निर्माता कंपनियों को कॉस्मेटिक प्रोडक्ट पर वेज या नॉन-वेज लेबल लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. सेंट्रल ड्रग ऑर्गेनाइजेशन (Central Drugs Standard Control Organization -CDSCO) ने दिल्ली हाई कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में यह बात कही है. सीडीएससीओ ने कहा है कि किस कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में वेज है या किसमें नॉन वेज, इसका लेवल कंपनियां अपनी स्वेच्छा से लगा सकती है. इसे लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. दरअसल, इसे लेकर एक एडवाइजरी जारी की गई थी जिसमें कहा गया था कि कंपनियों को स्वैच्छिक आधार पर साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट आदि कॉस्मेटिक सामानों पर वेजेटेरियन के लिए ग्रीन और नॉन वेजेटेरियन के लिए रेड डॉट का इस्तेमाल करना चाहिए. इस मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी.
कंपनियां स्वैच्छिक आधार पर डॉट का इस्तेमाल करें-डीटीएबी
सीडीएससीओ ने कहा है कि ड्रग टेक्नीकल एडवाइजरी बोर्ड (Drugs Technical Advisory Board -DTAB) इस बात पर राजी नहीं हुआ है कि कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में अगर वेज आइटम का इस्तेमाल हुआ है तो इसके लिए पैकेट पर ग्रीन और अगर नॉन-वेज आआइटम का इस्तेमाल हुआ है तो पैकेट पर इसके लिए रेड डॉट का लेबल लगाए. डीटीएबी के मुताबिक इससे जटिलताएं आएंगी और हितधारकों पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा. गौरतलब है कि इस संबंध में 10 दिसंबर को एक एडवाइजरी जारी की गई थी जिसमें कंपनियों को स्वैच्छि आधार पर ऐसा करने की छूट दे दी गई थी.
प्रोडक्ट के स्रोत के बारे में जानना मौलिक अधिकार
इस एडवाइजरी के खिलाफ एक गैर सरकारी संस्था राम गौ रक्षक दल ने याचिका दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका में कॉस्मेटिक प्रोडक्ट पर वेज और नॉन-वेज आइटम के इस्तेमाल के लिए लेबल लगाने की मांग की. इसके साथ ही इन उत्पादों के निर्माण प्रक्रिया में किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया गया है, इनके बारे में भी जानकारी देने की बात कही है. राम गौ रक्षा दल की ओर से वकील रजत अनेजा ने यह याचिका हाईकोर्ट में दायर की है. याचिका में कहा गया है कि देश के नागरिकों को यह जानने का मौलिक अधिकार है कि वे जो भोजन करते हैं, कॉस्मेटिक और इत्र का उपयोग करते हैं, या कपड़े पहनते हैं, उनमें किन-किन चीजों का इस्तेमाल किया गया हैं या उनको किन-किन चीजों से बनाया गया है. क्या उनमें किसी जानवर के शरीर के अंगों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं.
फूड आइटम में इस्तेमाल चीजों का स्रोत बताना अनिवार्य
याचिका पर संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने 9 दिसंबर को सभी फूड बिजनेस ऑपरेटर को फूड आइटम में इस्तेमाल सभी वस्तुओं को पूर्ण रूप से बताने के लिए अनिवार्य कर दिया था. अदालत ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने का अधिकार है कि वह क्या खा रहा है. कोर्ट ने कहा था कि कहीं बिजनेस ऑपरेटर प्लेट में दिए जाने वाले फूड के बदले कुछ और तो नहीं दे रहा है. कोर्ट ने कहा था जिन-जिन चीजों का फूड आइटम में इस्तेमाल हुआ है उनके लिए लिखित कोड होना चाहिए. साथ ही उन चीजों का स्रोत क्या है, इसके बारे में भी जानकारी होनी चाहिए. यानी फूड में इस्तेमाल चीजों को पौधें, लेबोरेटरी या जानवरों से प्राप्त किया गया है या कहीं और से. 31 जनवरी को इस मामले में सुनवाई होगी.