15 फरवरी से इतिहास के पन्नों में हो जाएगी दर्ज; 45 साल पुरानी बैंक की शहर में 3 शाखाएं और 80 हजार खाताधारक
देश का 155 साल और शहर का 45 साल पुराना सार्वजनिक क्षेत्र का इलाहाबाद बैंक ऑफ इंडिया 15 फरवरी से इंडियन बैंक में विलय के बाद भविष्य के लिए इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो जाएगा। हालांकि विलय (दोनों बैंकों के सर्वर एक होने) की तकनीकी प्रक्रिया 12 फरवरी की रात 9 बजे से शुरू होगी जो कि 15 फरवरी की सुबह 9 बजे तक चलेगी। बावजूद इसके इलाहाबाद बैंंक की नेट बैंकिंग, तकनीकी प्रक्रिया शुरू होने से तीन दिन पहले ही ध्वस्त हो चुकी है। ग्राहकों के फंड ट्रांसफर, चेक क्लियरिंग जैसे काम नहीं हो पा रहे हैं। बैंक के वरिष्ठ प्रबंधन के पास फिलहाल इस स्थिति से निपटने के कोई उपाय नहीं हैं।
शहर में इलाहाबाद बैंक की तीन शाखाओं में करीब 80 हजार खाताधारक हैं। इन तीनों शाखाओं का कारोबार 550 करोड़ रुपए है। 15 फरवरी से ये खाताधारक इंडियन बैंक के सर्वर पर शिफ्ट कर दिए जाएंगे। बैंक के मुख्य प्रबंधक अनंत खरे ने बताया कि महीने का दूसरा शनिवार और रविवार को छुट्टी के कारण बैंक बंद रहेगा। संभावना है कि सोमवार की सुबह 9 बजे से दोनों बैंकों के सर्वर एक प्लेटफार्म पर काम करना शुरू कर देंगे। हालांकि इसके बाद भी परेशानी बनी रह सकती है।
विलय से 3 दिन पहले सर्वर ठप, नेट बैकिंग ट्रांजेक्शन और चेक क्लियरिंग अटकी
{इलाहाबाद बैंक एम्पलॉयज यूनियन के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी रहे विवेक फडनीश 39 साल 3 माह 13 दिन की सेवा के बाद 19 जुलाई 2019 को सेवानिवृत्त हुए थे। उनके अनुसार 24 अप्रैल 1864 को मर्चेंट बैंक के रूप में उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद में बैंक शुरू की गई थी। चूंकि बैंक पानी के जहाजों से होने वाले कारोबार को अधिक प्रोत्साहन देती थी फलस्वरूप बैंक का मुख्यालय स्थापना के 20 साल बाद इलाहाबाद से कलकत्ता भेज दिया गया। तब से मुख्यालय कलकत्ता में है। विलय की शुरुआत तक देशभर में बैंक की तीन हजार शाखाएं और 21500 कर्मचारी थे।
बैंक प्रबंधन की शुरू से ही धारणा रही कि शाखा शुरू करने से पहले स्वयं का भवन होना चाहिए। दूसरे बैंकों की तुलना में इलाहाबाद बैंक के पास सबसे अधिक अचल संपत्तियां हैं। देशभर में बैंक की सबसे अधिक शाखाएं यूपी, दूसरे नंबर पर बंगाल, तीसरे नंबर पर बिहार और चौथे नंबर पर मध्यप्रदेश में 150 शाखाएं हैं। ग्वालियर में बैंक की 3 शाखाएं थीं। 3 पहली शाखा सनातनधर्म मार्ग पर 1976 में खोली गई थी जो कि अब इंडियन बैंक में मिल चुकी है। ये बैंक ऋण बांटती चली गई लेकिन इस ऋण की वापसी पूरी तरह नहीं हो सकी। सरकार की नीति के तहत मुनाफा कमा रही इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय कर दिया गया।