114 साल पहले पशु मेले से शुरू हुआ, ऑटोमोबाइल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स तक पहुंचा; सिंधिया राजघराने के महाराज भेष बदलकर आते थे
क्या आप जाने हैं कि देश विदेश में चर्चित ग्वालियर का व्यापार मेला आज से 114 साल पहले पशु मेला के रूप में सिंधिया राजघराने ने शुरू किया था। सन 1906 में तत्कालीन महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम के बारे में ऐसा बताया जाता है कि वह कई बार भेष बदलकर ग्वालियर के मेला में पहुंचे। कभी वह किसान के भेष में होते थे तो कभी साहूकार के भेष में। उनका भेष बदलकर मेला में पहुंचने का मकसद सिर्फ यही था कि मेला को घूमकर उसमें क्या कमियां है मेला को कैसे निखारा जा सके। साथ ही वह जो पैसा या संसाधन खर्च कर रहे हैं उसका उपयोग सही रूप में हो रहा है या नहीं। यह देखना होता था। 80 वर्षीय बुजुर्ग व्यापारी श्याम अग्रवाल बताते हैं कि देखते ही देखते यह पशु मेला कब ऑटो मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक्स का बड़ा मिला बन गया पता ही नहीं चला।
अपने प्रारंभिक दौर में यह मेला ग्वालियर के सागरताल के पास लगा करता था, लेकिन कुछ ही समय में इस मेला में भीड़ और कारोबार बढ़ने पर वहां जगह कम पड़ने लगी। इसके बाद यह मेला करीब 1920 के लगभग वर्तमान मेला परिसर के 108 एकड़ जमीन पर लगना शुरू हुआ। बीते 15 से 20 साल में सरकारें बदलने के साथ-साथ मेला का भी स्वरूप बदलता चला गया है। इसके बाद भी परम्परा, संस्कृति, आधुनिकता का बेहतरीन संगम है ग्वालियर का व्यापार मेला।
सरकारों के बदलने पर बदलता रहा मेला
- सन 2000 में प्रदेश में कांग्रेस सरकार थी, तब मेला का स्वरूप अलग था। उस समय मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हुआ करते थे। यहां ऑटो मोबाइल पर रोड टैक्स में छूट के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स आयटम पर सेल टैक्स में छूट मिलती थी। इसके साथ ही मेले में दिल्ली, मुम्बई और बंगाल से आने वाली युवतियों का डांस जिसे नुमाइश या थियेटर कहा जाता था काफी चर्चित था।
- 2003 में जैसे ही भाजपा की सरकार बनी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने सबसे पहले यह थियेटर बंद कराए। इसके साथ ही वाहन खरीद पर छूट भी कम की। इसके बाद लगातार भाजपा सरकार रही। इस दौरान मेले का स्वरूप बदलता और मनोरंजन से ज्यादा संस्कृति और कलाओं पर ध्यान दिया गया।
- साल 2010 में भी भाजपा की ही सरकार प्रदेश में थी। मुखिया शिवराज सिंह थे। इसके बाद ग्वालियर व्यापार मेला में लगने वाले दंगल का रोमांच कम हुआ। बैलगाड़ी दौड़ भी अभी कुछ वर्ष से नहीं हो रही है।
- साल 2018 में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो मेले का स्वरूप फिर बदला। तब मुख्यमंत्री कमल नाथ थे। काफी समय से बंद रोड टैक्स में 50 फीसदी की छूट फिर से दी गई। हां इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को कई पत्र लिखने पड़े थे।
ऐसा था शुरूआत का मेला
जब मेला लगना शुरू हुआ तो यह भारतीय संस्कृति की झलक दिखाता था। यहां पशु मेला लगता था। दंगल हुआ करते थे। जिसमें मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा व पंजाब तक से पहलवान अपना हुनर दिखाने आते थे। इसके साथ ही शिल्प बाजार में कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से अरूणाचल प्रदेश तक की कला और संस्कृति की झलक देखने को मिलती थी। आधुनिक भारत में संस्कृति से ज्यादा आधुनिकता ने मेले में अपने पैर जमाए। यहां प्रसिद्ध हापड़ के पापड़ की जगह पिज्जा और बर्गर लेते चले गए। लकड़ी के खिलौनों की जगह चाइनीज टॉय ने ले ली।
व्यापारियों का कहना
- ग्वालियर व्यापार मेला व्यापारी संघ के सचिव महेश मुदगल का कहना है कि राजघराने के सदस्य कई बार मेला में भेष बदलकर मेला देखने पहुंचे हैं। जिससे वह पहचाने न जा सकें और आसानी से मेले को देख सकें।
- मेला दुकान व्यापारी संघ के अध्यक्ष महेन्द्र भदकारिया का कहना है कि व्यापार मेला अदभुत है। लोक कलाओं, संस्कृति और आधुनिकता की झलक एक ही स्थान पर देखने को मिल जाती है।