सड़क हादसे में पत्नी ने दम ताेड़ा ताे एडवाेकेट ने शुरु की एंबुलेंस सेवा 20 साल में 3000 की जान बचाई

सड़क हादसे में घायल पत्नी को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई वाहन नहीं मिला..., दर्द से कराहते हुए पत्नी ने सड़क पर ही दम तोड़ दिया... इस हादसे ने एडवाेकेट रमेश कुशवाह के जीवन का उद्देश्य ही बदल दिया। उन्हाेंने जाे पीड़ा झेली, वह किसी और काे नहीं झेलना पड़े इसलिए उन्हाेंने वकालत का पेशा छाेड़कर घायलाें काे अस्पताल पहुंचाना ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

इतना ही नहीं, गरीब परिवार के किसी सदस्य के और लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का भी उन्होंने बीड़ा उठाया। पिछले 20 सालों में वे अब तक लगभग 3000 घायलों को अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचा चुके हैं। इसी तरह लगभग 4500 ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं, जो या तो लावारिस थे या जिनके परिजनों के पास अंतिम संस्कार के लिए पैसे नहीं थे। यह कहानी है शहर के जीवाजीगंज में रहने वाले एडवोकेट रमेश कुशवाह की। मानवता की मिसाल पेश करने वाले रमेश की पत्नी दमयंती शिक्षिका थीं। 5 दिसंबर, 1998 को वे बहोड़ापुर स्थित स्कूल से तांगे में बैठकर घ्रर जा रही थीं। रास्ते में एक ट्रक ने तांगे में टक्कर मार दी। हादसे के बाद दमयंती घायल हालत में लगभग आधा घंटे तक पड़ी रहीं। इसके बाद जब उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था तो रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।

एडवोकेट रमेश इस हादसे के बाद कुछ समय तक तो सदमे में रहे लेकिन फिर उन्होंने तय कर लिया कि अब कोई घायल सड़क पर नहीं तड़पेगा। उन्होंने वकालत की प्रैक्टिस छोड़कर अपनी जमापूंजी से 55 हजार रुपए में एक जीप खरीदी और सड़क हादसों में घायलों को अस्पताल पहुंचाने का काम शुरू कर दिया। उस समय 108 एंबुलेंस सेवा भी नहीं थी।

श्री कुशवाह की यह ऑनलाइन सर्विस ऐसे समय में कारगर साबित हुई और कुछ हद तक उन्हें अपनी जिद में सफलता भी मिलने लगी। इस बीच लावारिस घायलों को अस्पताल में भर्ती करने में उन्हें परेशानी हुई। अस्पताल में उन्हें सिर्फ इस वजह से भर्ती नहीं किया जाता है कि यदि इलाज के दौरान उनकी मौत हो जाती है तो अंतिम संस्कार कौन करेगा?‌

पुलिस ऐसे मामलों को हाथ में लेने से कतराती थी। श्री कुशवाह ने डॉक्टरों से कहा कि अगर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार पुलिस नहीं करती है तो वे ऐसे मृतकों का अंतिम संस्कार भी करवाएंगे। तब से शहर के तमाम थानों की पुलिस उन्हें लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवाने के लिए बुलाने लगी।

सेवा के लिए 5 लाख रुपए का इनाम मिला तो इस राशि से खरीद ली वैन

सड़क पर तड़प-तड़पकर पत्नी की मौत के हादसे से मैं टूट गया था। लेकिन मैंने सोचा कि मेरे लिए यहीं से एक नया रास्ता शुरु हो सकता है। मैंने ऐसे घायलों को अस्पताल पहुंचाने का काम शुरु किया। एक संस्था ने मुझे 2011 में रीयल हीरो का अवार्ड देते हुए 5 लाख रुपए की धनराशि दी थी।

इस रकम से मैंने एक और वैन खरीद ली। शुरु में मुझे अस्पताल और पुलिस थानों में परेशानी भी आई लेकिन प्रभु को मकसद पूरा करवाना था और उन्होंने ऐसा करवाया भी। इस काम में एडवाेकेट ममता सिंह कुशवाह भी मेरा पूरा साथ दे रही हैं।
-रमेश कुशवाह, एडवोकेट एवं समाजसेवी