भटककर मुरैना आई वृद्धा, बच्चों-नातियों की याद करके रोते हुए बोलीं-घर जाना है

चेहरे पर झुर्रियां, आंखों में आंसू भरे 60 से 65 वर्ष की उम्र वाली वृद्ध महिला, ठीक से बोल भी नहीं पाती। बोलने में भी थोड़ी दिक्कत लेकिन इतना जरूर बता पा रही है कि राजनांदगांव (छग) में मेरा घर है। मोहल्ला, कॉलोनी की बारे में सिर्फ इतना पता है कि बड़ा थाना है, उसके पास चिखली नामक जगह है। यह व्यथा है छह महीने से वृद्धाश्रम में रह रही द्वारिका पत्नी दामोदर की। 26 जून को महिला को रेलवे स्टेशन के नजदीक बेसहारा भटकते देखा तो पुलिस वालों ने उसे पहले वन स्टॉप सेंटर भेजा, जहां से इसे वृद्धाश्रम भेज दिया गया।

छह महीने तक देखरेख व खान-पान बेहतर होने पर महिला की मनोस्थिति थोड़ी सुधरी तो उसे अपने बेटे-नातियों की याद सताने लगी। लेकिन महिला ठीक से यह नहीं बता पा रही कि वह राजनांदगांव में कहां रहती है। जब घर के बारे में और अधिक पूछा तो कहने लगे-मुझे केंद्रीय बैंक में 350 रुपए पेंशन मिलती है, वह भी सात महीने से निकालने नहीं जा सकी। बेटों के बारे में पूछने पर सिर्फ इतना बताया कि मेरे बेटों के नाम विनोद, रवि व देवा है। विनोद का हाथ गन्ना के रस की मशीन में चला गया, जिसकी वजह से वह कुछ काम-धंधा नहीं कर रही।

मेरे छोटे-छोटे नाती हैं, घर जाना है

महिला द्वारका ने अपनी टूटी-फूटी भाषा में सिर्फ इतना बताया कि विनोद की शादी हो गई और उसकी बहु छोड़कर चली गई। उसके एक बेटा-एक बेटी भी है, जिसकी मुझे बहुत याद आती है। लेकिन राजनांदगांव जिले में घर के बारे में पूछने पर कभी चिखली नामक जगह के बारे में बताती है कभी कहती है कि हमारी बड़े थाने के पास दुकान है। वृद्धाश्रम की प्रबंधक पूनम शर्मा ने बताया कि महिला की भाषा समझ से परे है। उसके घर जाने की इच्छा के बारे में अपने आला अफसरों को पत्र लिखकर बताया लेकिन वहां से अभी तक कोई जबाव नहीं आया।

फूट-फूटकर रोती हैं और कहती हैं मुझे घर की याद आ रही है

वृद्धाश्रम की प्रबंधक पूनम शर्मा ने बताया कि महिला रोज अपने घर जाने की जिद कर रही है। कभी जोर-जोर से रोने लगती है, कभी चीखने-चिल्लाने लगती है। हरवक्त यही कहती है कि मुझे मेरे घर राजनांदगांव भेज दो। बच्चों-नातियों की बहुत याद आ रही है। मेरी 350 रुपए पेंशन भी नहीं निकली, वे किस हाल में होंगे।