पुलिस की कार्यप्रणाली पर हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने की सख्त टिप्पणी ,किसी को गिरफ्तार करने से ही उसे दोषी नहीं माना जा सकता
सिर्फ पुलिस के गिरफ्तार कर लेने से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं माना जा सकता है। यह टिप्पणी मप्र हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने अरुण शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को की।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने आरोपियों के फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करने, समाचार पत्रों में देने पर भी नाराजगी जताई । कोर्ट ने मप्र के डीजीपी के जनवरी 2014 में जारी उस सर्कुलर पर भी रोक लगाने का आदेश दिया, जिसमें पुलिस को आरोपियों का फोटो मीडिया में देने की अनुमति प्रदान की गई है।
कोर्ट ने कहा कि डीजीपी सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दें कि किसी भी आरोपी या पीड़ित की पहचान उजागर न हो और मामले की जांच संबंधी जानकारी एसपी की स्वीकृति के बाद मीडिया से साझा की जाए।
पुलिस पर जबरन दुकान खाली कराने के आरोप का मामला
याचिकाकर्ता अरुण शर्मा के खिलाफ बहोड़ापुर थाने में 25 जुलाई 2020 को एक महिला ने शिकायत की, कि अरुण शर्मा ना तो दुकान का किराया दे रहा है ना ही दुकान खाली कर रहा है। एसआई दिनेश राजपूत ने एसआई सुजिता सिंह को जांच सौंपी।
अधिवक्ता सुरेश अग्रवाल ने अनुसार एसआई सुजिता सिंह, सिपाही अचल शर्मा, अरुण शर्मा की दुकान पर पहुंचे और वहां से सामान उठा लाए। 14 अगस्त 2020 को पुलिस ने अरुण शर्मा को हिरासत में लेकर उनका फोटो आदतन अपराधी बताते हुए समाचार पत्रों व सोशल मीडिया में यह जारी करा दिया।
पीड़ित ने इसकी शिकायत एसपी ग्वालियर से की तो जांच हुई। जांच में पता चला कि याचिकाकर्ता निर्दोष है और उसके खिलाफ कोई भी प्रकरण पंजीबद्ध नहीं है। इस पर अरुण शर्मा ने पुलिस की कार्रवाई को गलत बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने व छवि धूमिल करने पर मुआवजा दिलाने की मांग की।
एसआई और सिपाही को नोटिस जारी किया
इस मामले में कोर्ट ने माना कि पुलिस ने याचिकाकर्ता को अवैध रुप से हिरासत में रखा। इस पर कोर्ट ने एसआई दिनेश राजपूत और सिपाही अचल शर्मा को नोटिस जारी करते हुए स्पष्टीकरण मांगा कि क्यों ना उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए?
मामले की अगली सुनवाई 9 नवंबर को होगी। जिसमें एसपी अमित सांघी को वीसी के माध्यम से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।