BJP के नरेन्द्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत के बीच मैदान मारने की होड़
दो साल पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में था. इस प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कुछ वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की. झंडेवालान में संघ के कार्यालय में हुई ये बातचीत मुख्यतौर पर इन मुद्दों पर थी.
RSS नेता: आप लोग RSS के ऑफिस में क्यों आए हैं?
CPC के नेता : हम ये समझना चाहते हैं कि RSS कैसे चलता है? CPC की तरह आप एक कैडर आधारित संगठन भी हैं.RSS नेता: हम दोनों निश्चित रूप से कैडर-आधारित संगठन हैं. लेकिन दोनों के बीच एक अंतर है. सीपीसी सरकार के माध्यम से काम करती है, जबकि आरएसएस आम जनता के बीच काम करती है इन्हें सरकार का कोई समर्थन नहीं मिलता है.
दोनों के बीच ये बातचीत मुख्य तौर पर आरएसएस में संगठन को तैयार करने को लेकर थी. आरएस का मुख्य उद्देश्य वैचारिक तंत्र से राजनीतिक सत्ता को हटाना है. लेकिन शुरूआती दौर में कांग्रेस ने संघ को आगे बढ़ने के ज़्यादा मौके नहीं दिए. ऐसे में उन्हें अपने ही संगठन पर ही निर्भर होना पड़ा.
तीसरे सरसंघचालक बाला साहब देवरस पहले आरएसएस प्रमुख थे जिन्होंने राजनीतिक शक्ति के जरिए विचारधाराओं को आगे बढ़ाने की बात कही. लिहाजा पिछले चार दशकों में, आरएसएस के राजनीतिक सहयोगी के रूप में बीजेपी देश में प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने लगी है.
इस प्रक्रिया में और खास कर पिछले तीन सालों में बीजेपी ने आरएसएस की तर्ज पर पार्टी का विस्तार करने के लिए कई कदम उठाए हैं. यानी एक तय वक्त में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना.
इसके अलावा पिछले तीन साल में बीजेपी ने 'विस्तारक' की अवधारणा को बढ़ावा दिया है.
'विस्तारक' बीजेपी के वो कार्यकर्ता हैं जो अपने घर के बाहर यानी दूसरे ज़िलों में पार्टी के लिए दो हफ्ते या फिर कम से कम एक साल तक काम करते हैं. ये कॉनसेप्ट बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह लेकर आए हैं. 'विस्तारक' राज्य के भाजपा संगठन के सचिवों को सीधे रिपोर्ट करते हैं. ये 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी का काफी अहम कदम है. उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में बीजेपी तृणमूल कांग्रेस के मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है और इसके लिए हर विधानसभा क्षेत्र के लिए 'विस्तारक' जम कर काम कर रहे हैं.
इससे पहले, बीजेपी में फुलटाइम सिर्फ संगठन के सचिव ही होते थे. आमतौर पर ये संघ के प्रचारक होते थे जो पार्टी और संघ के बीच बातचीत के लिए कड़ी तैयार करते थे. ऐसे प्रचारकों की एक लंबी सूची है जो सालों से राजनीतिक क्षेत्र में काम कर चुके हैं और उन्हें जिला से राष्ट्रीय स्तर तक बीजेपी के संगठनात्मक सचिव बनाए गए हैं. इस तरह से संघ हमेशा पर्दे के पीछे से काम करती रही है.
बीजेपी अब कैडर से आमलोगों की पार्टी बन गई है. ऐसे में अब आरएसएस भी अपने कामकाज के तरीकों में बदलाव ला रही है. पिछले दिनों मेरठ में आरएसएस का महासमागम इसी बदलाव का हिस्सा था. जहां आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत एक खुली जीप में लोगों के बीच पहुंचे. इससे पहले मोहन भागवत ने जनवरी के तीसरे हफ्ते में गुवाहाटी में 40,000 स्वयंसेवकों की एक सभा को संबोधित किया था. इसी तरह की दो और बैठक मुजफ्फरपुर और वाराणसी में भी इस साल आयोजित की गई.
आरएसएस के कार्यक्रमों में आमतौर पर स्वंगसेवक यूनिफॉर्म में जमा होते हैं. ड्रम के बीट्स पर वो मार्च करते हैं. लेकिन आरएस का जोर अब बड़े आयोजन पर है जहां भारी संख्या में लोग पहुंचे जैसा कि गुवाहाटी और मेरठ में हुआ. संघ के लोग इसका ज़ोर-शोर से प्रचार प्रसार करते हैं.
आरएसएस के एक नेता कहते हैं " आरएसएस ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि ऐसे आयोजन से काफी मीडिया कवरेज मिलता है. इसे सामरिक बदलाव के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. पहले भी राजू भैया, सुदर्शन जी और देवरस जी ने स्वयंसेवकों के बड़े सभा को संबोधित किया है. संघ के भीतर शाखाओं की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाता है''.