नेपोटिज्म पर बोलीं शबाना आजमी- मुद्दे पर शालीनता से बात हो, सर्कस ना बनाया जाए

जबसे सुशांत सिंह राजपूत की सुसाइड का मामला उजागर हुआ है तबसे इंडस्ट्री में आउटसाइडर और इनसाइडर को लेकर डिबेट और तेज हो गई है. ऐसा नहीं है कि इसे लेकर डिबेट पहले नहीं हुई, कई बार एक्ट्रेस कंगना रनौत इस मुद्दे को उठा चुकी हैं मगर जबसे सुशांत सिंह राजपूत की सुसाइड का मामला सामने आया है तबसे इस बात को लेकर बहस काफी तेज हो गई है. हाल ही में एक्ट्रेस शबाना आजमी ने इंडिया टुडे के लिए सुशांत मेहता को इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने सोशल मीडिया पर छिड़ी आउटसाइडर और इनसाइडर के बीच की बहस पर अपनी प्रतिक्रिया दी.

उनसे पूछा गया कि आउटसाइडर वर्सेज इनसाइडर, नेपोटिज्म और मूवी माफिया पर आपका क्या करना है. शबाना आजमी ने इसका जवाब देते हुए कहा- किसी भी डिबेट का स्वागत है. मगर उसे ठीक तरीके से किया जाए. सभी को हक है अपनी बात रखने का ताकि दो अलग-अलग दृष्टिकोण पर बातें की जा सकें. ये बहुत जरूरी है. अगर ये किसी मैदान में भरे शोर की तरह हो जाएगा और इसके साथ कोई एजेंडा जुड़ जाएगा, तो लोग सुनना बंद कर देंगे. मेरे हिसाब से इसे एक अच्छे अवसर को गंवाना माना जाएगा. नेपोटिज्म कहां नहीं होता है. इसे सिर्फ बॉलीवुड में ही क्यों देखा जाता है. नेपोटिज्म तो हर जगह है. इंडस्ट्रलिस्ट के बेटे को उद्योग जगत में अवसर मिलता है, डॉक्टर के बेटे को रेडीमेड क्लिनिक मिल जाता है. लॉयर के बेटे को भी अपने बेनिफिट मिलते हैं. मैं इसलिए आर्टिस्ट बनीं क्योंकि मेरी माता और पिता दोनों ही आर्टिस्ट थे और मुझे वो माहौल मिला. मेरे भाई के साथ भी ऐसा ही हुआ. इसमें कोई हर्ज नहीं है. बस ये पता होना चाहिए कि आप किस चीज में अच्छे हैं और आपको उस चीज के लिए समाज कबूलेगा कि नहीं. हर मुद्दे पर शालीनता से बात की जाए उसे एक सर्कस ना बना दिया जाए.

सुशांत केस पर क्या बोलीं शबाना आजमी-

शबाना आजमी ने कहा कि मुझे लगता है कि सच बाहर आएगा. अब मामला सीबीआई के हाथ में है. क्यों हम लोग किसी भी निर्णय तक पहुंचने की जल्दी में हैं और खुद ही जज बने जा रहे हैं. कानून को अपना काम करने दीजिए. दिक्कत ये है कि इस मामले में लोगों के पास बड़ी कम जानकारी है और लोगों ने उस तर्ज पर ढेर सारा ओपिनियन बना लिया है. सोशल मीडिया पर तो छूट है कुछ भी कहने की. किसी के बारे में इतना भयानक कहने की क्या जरूरत है. हमारा काम तोड़ना है या जोड़ना है ये तय तो हम खुद ही करेंगे. मैं कैफी आजमी साहब की बेटी हूं जिन्होंने एकता के लिए एक एंथम लिखा था. आप अगर इजाजत दें तो मैं उसके कुछ शब्द सुना सकती हूं. तोड़ना अपना काम नहीं है , हम हैं दिलों को जोड़ने वाले. क्या हिंदू और क्या मुस्लिम, कैसे गोरे और कैसे काले. एक ही माला के सब धागे, हम दीवाने, हम परवाने. अपने वतन के अपने चमन के हम परवाने.