बेहट के पास जमीन में धंसी है आला की तलवार
ग्वालियर। बुंदेलखण्ड के महावीर आला ऊदल का नाम आपने सुना होगा। इन दोनों महावीर योद्धाओं के बारे में यह किवद्वंति भी है कि इनमे आला आज भी अमर है, आज भी मैहर सतना मां शारदा देवी के मंदिर में पट बंद होने के बाद भी यह दोनों महावीरों के द्वारा सबसे पहले फूल चढ़ाने की प्रथा नियमित रूप से कायम हैं।
ग्वालियर के पास भी आला ऊदल के सैंकड़ों किस्से कहानियां कही जाती है। 12वीं और 13वीं सदी के इन महावीरों का एक प्रमाण ग्वालियर में बेहट रोड पर हस्तिनापुर थाने के समीप भी मिलता है। जहां आला की एक विशालकाय कटारनुमा तलवार जमीन में धंसी हुई है, जिसका मूठ जमीन से ऊपर दिखता है। किवद्वंति है कि आला ऊदल को आकाश मार्ग से उड़ने की विघा प्राप्त थी। जिस कारण एक बार जब आला ऊदल बुंदेलखण्ड से आकाश मार्ग से कहीं जा रहे थे तब उनकी विशालकाय तलवार हस्तिनापुर के पास जा गिरी और सीधे जमीन में धंस गई। देखने में पत्थर की लेकिन धातु की बनी यह तलवार आज भी जमीन में धंसी है।
इसे जमीन से निकालने की कई बार कोशिश हुई, लेकिन निकाली न जा सकी। एक किवद्वंति के अनुसार बताया जाता है कि सेना की छावनी के तहत सड़क विस्तारीकरण में इसे सेना की टुकड़ी ने बड़ी क्रेन की सहायता से एक निकाल भी लिया था, लेकिन रात्रि में इस अभियान से जुड़े सभी सैनिक बीमार हो गये तो इस तलवार को पुनः वापस लाकर उसी स्थान पर जमीन में दबा दिया गया। आज भी बेहट, मौ, सेवढ़ा जाने वाले लोग बेहट मार्ग पर रूककर तलवार को नमन करते हैं। जरूरत है यहां इसे अब एक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की। स्थानीय न्यूज चैनल एसकेएस ने भी इसका प्रसारण किया था, लेकिन अभी तक इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया है।