नरेंद्र तोमर ने भी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हाथ खींचे!
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी कांटों का ताज बन गई है। हर कोई इससे भाग रहा है। हाईकमान करीब 1 साल से नंदकुमार सिंह चौहान का विकल्प तलाश रहे हैं, मप्र में ऐसे नेताओं की कमी भी नहीं है। करीब एक दर्जन नेताओं का मन भी टटोला गया, परंतु कोई भी इस कुर्सी पर बैठने को तैयार नहीं। कैलाश विजयवर्गीय से शुरू हुआ इंकार कर सिलसिला, उम्मीद थी कि नरेंद्र सिंह तोमर पर आकर रुक जाएगा परंतु उन्होंने भी इस पद को लेने से इंकार कर दिया है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खुद को प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ से दूर बताते हुए कहा है कि उनका नाम पार्टी के विचार में नहीं है। तोमर ने पत्रकारों से सवालों के जवाब में अपने प्रदेशाध्यक्ष बनने की संभावनाओं को सिरे से नकार दिया। इस सवाल पर कि अगर उन्हेंं प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जाती है तो वे इसे संभालेंगे, तोमर ने कहा कि जो बात विचार में ही नहीं है उस पर बात करने के कोई मायने नहीं है। भाजपा के दिग्गज नेता एवं पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का नाम सबसे पहले चर्चाओं में आया। कुछ दिनों तक सुर्खियां बना रहा फिर खुद कैलश विजयवर्गीय ने खुद को इससे अलग कर लिया।
माना जा रहा था कि नरोत्तम मिश्रा 2018 का चुनाव नहीं लड़ेंगे और प्रदेश अध्यक्ष पद पर आकर संगठन के लिए काम करेंगे। नरोत्तम मिश्रा दिल्ली गए। खबर आई कि नाम फाइनल हो गया है, लेकिन फिर धीरे से मिश्रा के नाम की चर्चाएं बंद हो गईं। पिछले दिनों मप्र के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया का नाम भी चर्चाओं मे आया था। नरोत्तम मिश्रा खुद उन्हे अमित शाह से मिलवाने ले गए थे, लेकिन बाद में पवैया ने भी इंकार कर दिया।
सत्ताधारी दल में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी कितनी पॉवरफुल होती है सब जानते हैं, फिर सवाल यह है कि मप्र के दिग्गज नेता इस कुर्सी से भाग क्यों रहे हैं। पिछले दिनों एक बयान में नरेंद्र सिंह तोमर ने खुद कहा था कि जब जब चुनाव आते हैं उनकी और शिवराज की जोड़ी बन जाती है। इसके बाद जब प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की खबर आई तब भी तोमर शांत रहे। बाद में उन्होंने खुद को रेस से बाहर कर लिया।