सियासत का बदलापुर बनेगा एमपी, 'शिव'राज की फाइलें खंगालने में लगे कमलनाथ
मध्य प्रदेश में बीजेपी के दो विधायकों को अपने खेमे में लाने के बाद कमलनाथ फ्रंटफुट पर खेलते रहना चाहते हैं. अब उनके टारगेट पर बीजेपी के वो नेता और विधायक हैं, जो पार्टी के लिए 'मैनेजर्स' की भूमिका में हैं.
कर्नाटक और गोवा में कांग्रेस विधायक दल में हुई सेंधमारी से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ सतर्क हो गए हैं. बीजेपी के दो विधायकों को अपने खेमे में लाने के बाद कमलनाथ फ्रंटफुट पर खेलते रहना चाहते हैं. अब उनके टारगेट पर बीजेपी के वो नेता और विधायक हैं, जो पार्टी के लिए 'मैनेजर्स' की भूमिका में हैं. कांग्रेस की नजर उन विधायकों पर भी है, जो खनन और शराब जैसे कारोबार से जड़े हुए हैं और इसके चलते उनकी नब्ज सरकार के हाथों में है.
कमलनाथ सरकार ने शिवराज सरकार में मंत्री रहे बीजेपी के वरिष्ठ विधायक नरोत्तम मिश्रा पर शिकंजा कस दिया है. ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच तेज हो गई है. ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) ने नरोत्तम मिश्रा के दो पुराने कर्मचारी वीरेंद्र पांडे और निर्मल अवस्थी को जेल भेज दिया है.
ईओडब्ल्यू के महानिदेशक ने पत्रकारों से कहा था कि गिरफ्तार लोगों के यहां छापों में टेंडर्स में टेंपरिंग (छेड़छाड़) के पुख्ता साक्ष्य मिले हैं. पूरी पड़ताल के बाद प्रदेश के कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे.
खास बात ये है कि नरोत्तम मिश्रा बीजेपी के मैनेजर माने जाते हैं और विरोधी दलों में 'तोड़फोड़' के उस्ताद हैं. ईओडब्ल्यू की छापेमारी में जो दस्तावेज मिले हैं, वे जल संसाधन विभाग से संबंधित हैं. शिवराज सरकार में इस विभाग के मंत्री नरोत्तम मिश्रा ही थे.
मिश्रा ने अपने पुराने सहयोगियों की गिरफ्तारी पर कहा है कि चपरासी और बाबू जैसे लोगों को कमलनाथ सरकार तंग कर रही है. टेंडर प्रमुख सचिव, अपर मुख्य सचिव और मुख्य सचिव स्तर से पास हुए बगैर मंजूर नहीं होते हैं. सरकार उनकी चरित्र हत्या पर आमादा है लेकिन वह घबराने वाले नहीं हैं. ईओडब्ल्यू के महानिदेशक को चेताते हुए मिश्रा ने कहा कि सरकार के दबाव में बयानबाजी न करें, सरकारें आती-जाती रहती हैं. पुख्ता सबूतों के आधार पर ही बात करें.
मध्य प्रदेश की सत्ता पर जब बीजेपी काबिज थी तो नरोत्तम मिश्रा की तूती बोला करती थी. कांग्रेस के कई विधायकों को तोड़कर बीजेपी में लाने में मिश्रा ने अहम भूमिका अदा की थी. कांग्रेस विधायक दल के उप नेता रहे चौधरी राकेश सिंह से लेकर संजय पाठक और कांग्रेस का टिकट मिल जाने के बाद अचानक पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले भागीरथ प्रसाद के दलबदल में मिश्रा का अहम रोल था.
बीजेपी की लगातार धमकियों के बीच कांग्रेस विधायकों में टूट-फूट या पाला बदलने की संभावनाओं के मद्देनजर सबसे ज्यादा निगाहें नरोत्तम मिश्रा की गतिविधियों पर ही रखी जा रही थीं. यही वजह है कि कमलनाथ सरकार के निशाने पर सबसे पहले नरोत्तम मिश्रा आए हैं.
ई-टेंडरिंग की तरह कमलनाथ सरकार की नजर बहुचर्चित व्यापमं और डंपर घोटाले पर भी है. व्यापमं घोटाले को लेकर पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. दिग्विजय ने पत्र में कहा कि घोटाले के मुख्य आरोपियों को कानून के दायरे में लाकर सजा दिलाने के लिए आवश्यक पहल की जाए.
दिग्विजय सिंह ने कहा है कि वर्ष 2013 में चिकित्सा महाविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा के दौरान व्यापमं घोटाला उजागर हुआ. इस घोटाले को सिर्फ मेडिकल परीक्षा तक सीमित रखा गया. तत्कालीन सरकार ने विद्यार्थियों को मोहरा बनाया और मामले में सिर्फ छात्रों व युवाओं को आरोपी बनाया, जबकि इस घोटाले को अंजाम देने वाले मुख्य आरोपियों को बचाया गया. इसी के बाद कमलनाथ सरकार ने व्यापमं घोटाले की फाइल खोलना शुरू कर दी है. माना जा रहा है कि इस जांच के बहाने कमलनाथ सरकार शिवराज सिंह को टारगेट पर ले सकती है.
कमलनाथ सरकार डंपर घोटाले के 'जिन्न' को भी एक बार फिर बोतल से बाहर निकाल सकती है. मध्य प्रदेश के गृह और सामान्य प्रशासन मंत्री डॉक्टर गोविंद सिंह ने हाल ही में बयान दिया कि डंपर घोटाले की जांच में शिवराज सरकार ने लीपापोती करवा दी थी. इस मामले की फाइल को बंद कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को जांच में नजरअंदाज किया गया था. सरकार नए सिरे से इस पूरे मामले की जांच कराएगी. डंपर घोटाले की असलियत प्रदेश की जनता के सामने कमलनाथ सरकार अवश्य लाकर रहेगी.