मध्यप्रदेश को रोज 15 हजार मीट्रिक टन कम कोयला दे रहा केंद्र
मध्यप्रदेश को कोयले से विद्युत उत्पादन के लिए हर दिन 15 हजार मीट्रिक टन कम कोयला मिल रहा है। इसका असर थर्मल पावर जनरेशन पर भी पड़ रहा है। ऐसे में बिजली उत्पादन प्रभावित होने के कारण राज्य सरकार को दूसरे स्त्रोतों से बिजली की उपलब्धता के लिए डिमांड के मुताबिक व्यवस्था करनी पड़ रही है।
पिछले तीन सालों में प्रदेश को कभी भी कोल इंडिया के साथ हुए एग्रीमेंट के आधार पर कोयला प्रदाय नहीं किए जाने की भी बात सामने आई है। थर्मल पावर जनरेट करने वाले प्रदेश के ताप विद्युत गृहों को कोयले की सप्लाई बराबर नहीं मिलने के कारण कई बार बंद रखना पड़ रहा है। ऊर्जा विभाग के अफसरों के मुताबिक थर्मल पावर जनरेशन के लिए प्रदेश को प्रतिदिन 55 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है, लेकिन इसके विपरीत कोयला औसत 40338 मीट्रिक टन प्रतिदिन ही मिल पा रहा है। ऐसे में जब गर्मी पड़ना शुरू हो गई है और बिजली की डिमांड अधिक होती जा रही है तो कम कोयला मिलने से प्रदेश में सप्लाई प्रभावित होना भी तय माना जा रहा है।
बिजली उत्पादन के लिए पिछले छह माह में जो डिमांड सामने आई है, उसके मुताबिक अमरकंटक ताप विद्युत गृह को 4000 मीट्रिक टन प्रतिदिन की डिमांड के बदले 3063 मीट्रिक टन कोयला ही दिया गया। इसी तरह संजय गांधी ताप विद्युत गृह बिरसिंहपुर को 18000 के बजाय 15690 मीट्रिक टन, सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी को 19 हजार के बजाय 11738 मीट्रिक टन, सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना खंडवा को 14000 के बदले 9847 मीट्रिक टन कोयला ही पावर जनरेशन के लिए मिल पाया।
केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछले तीन सालों में राज्य को कभी भी भरपूर कोयला नहीं मिला है। कोयले के आवंटन को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच हुए अनुबंध के मुताबिक वर्ष 2014-15 में 185.11 लाख मीट्रिक टन कोयला देना था पर एमपी को सिर्फ 133.88 लाख मीट्रिक टन कोयला ही दिया गया। इसी तरह वर्ष 2015-16 में 210.38 लाख मीट्रिक टन के बजाय 144.33 लाख मीट्रिक टन तथा वर्ष 2016-17 में 158.49 लाख मीट्रिक टन के बजाय 91.43 लाख मीट्रिक टन कोयला ही प्रदाय किया गया। इसी तरह की स्थिति वर्ष 2017-18 में रही है, जिसके चलते पिछले छह माह से थर्मल पावर जनरेशन का काम प्रभावित हुआ