क्यों मुंबई में उमड़ा नाराज किसानों का सैलाब?

महाराष्ट्र के 30 हजार से कहीं ज्यादा किसान मुंबई में विधानसभा का घेराव करने वाले हैं. उनका आरोप है कि राज्य सरकार ने कर्ज माफी के नाम पर उनके साथ विश्वासघात किया है. उनकी हालत जस की तस है. उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो लंबे समय तक मुंबई में विधानसभा का घेराव करेंगे.

क्या है किसानों की नाराजगी की वजह 
किसानों का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल 34 हजार करोड़ रुपए की सशर्त कृषि माफी की घोषणा की थी लेकिन अब तक लागू नहीं किया गया. पिछले साल जून में हुई इस घोषणा के बाद से महाराष्ट्र में 1753 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. किसान अब इस मामले में आर या पार चाहते हैं.

नासिक में छह मार्च से उन्होंने मुंबई यात्रा शुरू की. 11 मार्च को वो मुंबई पहुंचे. अब 12 से विधानसभा घेराव शुरू कर रहे हैं. नासिक से मुंबई तक की उनकी यात्रा 180 किलोमीटर की रही. रात में वो विश्राम करते थे. फिर दिन में रोज तकरीबन 30 किलोमीटर की यात्रा. ये यात्रा मुंबई- आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुई. रास्ते में उनसे और किसान जुड़ते चले गए. उनके साथ बड़े पैमाने पर आदिवासी भी शामिल हैं.

आदिवासी इस विरोध में क्यों शामिल हैं
किसानों के इस मार्च में बड़े पैमाने पर आदिवासी भी शामिल हैं. आदिवासी किसानों की मांग है कि जिन जमीनों पर वो खेती किसानी कर रहे हैं, उसका मालिकाना हक उन्हें अब तक नहीं मिला. उन्हें उन जमीनों पर अपना हक चाहिए. किसान आदिवासी वनभूमि के आवंटन से जुड़ी समस्याओं के निपटारे की भी मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि आए  ताकि आदिवासी किसानों को उनकी ज़मीनों का मालिकाना हक मिल सके.

किसानों की मांगें क्या हैं
किसान कर्ज माफी, बिजली बिल माफी और उचित समर्थन मूल्य के साथ स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कराना चाहते हैं.
- किसानों की सबसे बड़ी मांग है कर्जमाफी. बैंकों से लिया कर्ज किसानों के लिए बोझ बन चुका है. मौसम के बदलने से हर साल फसलें तबाह हो रही है. ऐसे में किसान चाहते हैं कि उन्हें कर्ज से मुक्ति मिले.
- संगठनों का तर्क है कि महाराष्ट्र के अधिकतर किसान फसल बर्बाद होने के कारण बिजली बिल नहीं चुका पाते हैं. इसलिए उन्हें बिजली बिल में छूट दी जाए.
- फसलों के वाजिब दाम की मांग किसान लंबे समय से कर रहे हैं. सरकार ने हाल के बजट में भी किसानों को एमएसपी का तोहफा दिया था, लेकिन कुछ संगठनों का मानना था कि केंद्र सरकार की एमएसपी की योजना महज दिखावा है.
- वो चाहते हैं कि सरकार स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें भी लागू करे.
एआईकेएस के सचिव राजू देसले ने किसान यात्रा की शुरुआत के वक्त ये भी कहा, ‘हम ये भी चाहते हैं कि राज्य सरकार विकास परियोजनाओं के नाम पर सुपर हाइवे तथा बुलेट ट्रेन के लिए कृषियोग्य भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं करे.’

कौन कर रहा है कि किसानों के इस अांदोलन की अगुवाई
किसानों का ये आंदोलन आल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) की अगुवाई में हो रहा है. एआईकेएस के बैनर तले किसान लंबे समय से कर्जमाफी के लिए आंदोलन कर रहे हैं. सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी सियासी दलों ने इस आंदोलन को सही ठहराते हुए उन्हें अपना समर्थन दिया है.

अब तक क्या हुआ कर्ज माफी के मामले में 
किसानों का कहना है कि कर्ज़ माफ़ी के संबंध में जो आंकड़े दिए गए हैं, उन्हें बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है. जिला स्तर पर बैंक खस्ताहाल हैं. इस कारण कर्ज़ माफ़ी का काम अधूरा रह गया है. इस स्थिति में बैंकों को जितना लोन किसानों को देना चाहिए, उसका दस फीसद भी नहीं हो पाया है.
कर्ज़ माफ़ी की प्रक्रिया इंटरनेट के ज़रिए हो रही है लेकिन डिजिटल साक्षरता किसानों के पास नहीं है. ये भी एक समस्या सामने आ रही है.
जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार थी तक राज्य पर ढाई लाख करोड़ रुपये के ऋणभार था. ये ऋणभार अब बढ़कर 4 लाख 13 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

क्या है राज्य में कृषि की हालत 
राज्य के आर्थिक सर्वे की बात करें तो बीते सालों में कृषि विकास दर कम हुई है. खेती से होने वाली आय 44 फीसदी तक कम हो गई है. कपास, अनाज और दलहन से होने वाली आय दिन प्रतिदिन कम हो रही है. और इस कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था से पैसा लगातार बाहर जा रहा है.

स्वामीनाथन आयोग क्या है और क्या हैं सिफारिशें
प्रोफ़ेसर एम एस स्वामीनाथन भारतीय हरित क्रांति के जनक हैं. उनकी अध्यक्षता में नवंबर 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया गया. कमेटी ने अक्टूबर 2006 में अपनी रिपोर्ट दे दी. लेकिन इसे अब कहीं भी सही तरीके से लागू नहीं किया गया है
- फ़सल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम किसानों को मिले.
- किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाएं.
- गांवों में किसानों की मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाया जाए.
- महिला किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाएं.
- किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाए, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिल सके.
- सरप्लस और इस्तेमाल नहीं हो रही ज़मीन के टुकड़ों का वितरण किया जाए.
- खेतीहर जमीन और वनभूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कॉरपोरेट को न दिया जाए.
- फसल बीमा की सुविधा पूरे देश में हर फसल के लिए मिले.
- खेती के लिए कर्ज की व्यवस्था हर गरीब और जरूरतमंद तक पहुंचे.
- सरकार की मदद से किसानों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दर कम करके चार फीसदी किया जाए.
- कर्ज की वसूली में राहत, प्राकृतिक आपदा या संकट से जूझ रहे इलाकों में ब्याज से राहत हालात सामान्य होने तक जारी रहे.
- लगातार प्राकृतिक आपदाओं की सूरत में किसान को मदद पहुंचाने के लिए एक एग्रिकल्चर रिस्क फंड का गठन किया जाए.

चुनाव के पहले किसानों का दबाव...
अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र में भी विधानसभा होंगे. ऐसे में किसानों को लगता है कि सरकार पर दबाव डालने का ये सही वक्त है.