महिलाऐं सवैधानिक अधिकार के कारण विकाश की ओर अग्रसर
जीवाजी विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर “महिलाओं के अधिकार-उनका समाज पर नकारात्मक एवं सकारात्मक प्रभाव” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभाग के कोऑर्डिनेटर डॉ. शान्तिदेव सिसोदिया एवं विभाग के अतिथि विद्वान डॉ. जयंती शर्मा, डॉ. नंदनी पाठक, डॉ. कविता शर्मा एवं डॉ. भारत भूषण के साथ साथ एम॰ए॰ द्वितीय एवं चतुर्थ semester के छात्र/छात्रायें थे l इस परिचर्चा में छात्रों द्वारा महिलाओं के संविधानिक अधिकारों का समाज पर प्रभाव एवं उनके क्रियान्वयन पर अपने विचार रखें इस कड़ी में प्रगति मौर्य ने महिला अधिकारों जैसे सम्पति का अधिकार, समानता का अधिकार, दहेज प्रथा के विरुद्ध अधिकार, घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिकार आदि पर सकारात्मक प्रकाश डाला जिसमें उन्होंने बताया कि इन अधिकारों के फलस्वरूप महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास हुआ है l इसी कड़ी में इन अधिकारों के नकारात्मक प्रभाव को रवि कोटिया एवं अनुराधा तुडेले ने उजागर करते हुए कहा कि जहाँ एक ओर अधिकारों की बजह से महिलायें अंतिरिक्ष में अपना परिचम लहरा रहीं हैं तो दूसरी ओर समाज में भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध भी समाज में हो रहें हैं और इसमें बालिकाओं की भ्रूण हत्या के अपराध अनुपातिक दृष्टि से सर्वाधिक हैं
इसी क्रम में वैष्णवी भदकरिया एवं प्रदीप कुशवाह ने महिला अधिकारों का सकारात्मक प्रभाव को बताते हुए कहा कि आज महिलायें समाज के प्रत्येक क्षेत्र जैसे शासन-प्रशासन में बराबर की भागीदारी के साथ-साथ भारत की सुरक्षा में भी भागीदारी कर रहीं हैं जिसके तहत आज उन्हें सेना, वायु सेना एवं जल सेना में भी देश के प्रति अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वाह कर रही हैं l इसी क्रम में आकाश सिंह तोमर एवं आकांक्षा सोलंकी ने बताया कि महिलाओं के अधिकार तो प्राप्त हैं लेकिन धरातल पर अभी भी उन्हें इन अधिकारों का लाभ प्राप्त नही हो रहा है आज भी महिलाओं को सामाजिक के तकिया-नूसी सोच के कारण उन्हें विकास से दूर रखा जा रहा है इसके साथ ही समाज में घरेलू हिंसा एवं दहेज जैसी बुराई व्याप्त हैं साथ ही महिलायें अभी भी सामाजिक असुरक्षा महसूस करती है
उपरोक्त परिचर्चा में निष्कर्ष में यह पहलू सामने आया कि आज की तकनीकी युग में महिलायें अपने अधिकारों के लाभ से वंचित हैं और उसके लिए समाज की महिलाओं के प्रति ग़ैर-बराबरी जैसी संकीर्ण सोच को बदलना होगा और पुरुषों को उनके अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए आगे आना होगा जिससे महिलाओं के विकाश की एक नवीन चेतना का प्रस्फुटन हो सके l इस परिचर्चा का संचालन डॉ. नंदनी पाठक ने किया तथा आभार डॉ. कविता द्वारा दिया गया